Thursday, October 31, 2013

किस्सा और बोसा

वक्‍त के सेल्‍यूलाइड पर्दे पर किस्‍सा पहले आया या बोसा? या कि दोनों इक दूजे का हाथ थामे साथ साथ चले आए थे. किसके किस्‍से में सबसे पहले बोसा आया था और किसके बोसे पर पहला किस्‍सा बना. इन सब पर किस्‍से कहे जा सकते हैं लेकिन युवा पत्रकार जे सुशील ने अपने ढंग से इनकी बात कही है.... पृथ्वी परिहार 

मेरे पास किस्से थे
उसके पास बोसे थे
मैं किस्सा सुनाता और वो बोसे देती.
जे सुशील
ऐसे ही किस्से और बोसे की दोस्ती हो गई.
जादूगरों के किस्से, जंगलों के किस्से, अय्यारों के किस्से.
बोसा बदलता नहीं वही मिठास, वही ललक और उसी प्रेम से.
बोसा वहीं रहा किस्सा बदलता गया.
किस्से को किस्सागो बनना था दास्तान लिखनी थी वो शहर आ गया.
बोसा वहीं रह गया जहां वो था. याद करता किस्सों को और यादों में ही बोसे देता.
उधर किस्सा नित नए किस्से गढ़ने लगा, सुनाने लगा, किस्मत चमकी किस्से की. दास्तान पर दास्तान लिखता चला गया
और बना बड़ा किस्सागो.
इमारतें मिलीं, चेहरे मिले, दौलत मिली पर किस्से को फिर कभी वो बोसा न मिला.
उन दीवारों के जंजाल में, किस्सों की परतों में बोसे को खोजता फिरता किस्सागो बावला हो गया.
अपने कपड़े फाड़ रोने लगा और मांगने लगा हर आने जाने वाले से एक बोसा..बस एक बोसा.
दुनिया पैसे फेंकती उसके इस किस्से पर और कहती..देखो कितना बड़ा किस्सागो और क्या उसका किस्सा है एक बोसे का.
फिर एक दिन उसने भरे बाज़ार में कपड़ों के चीथ़ड़े कर डाले और दौड़ने लगा. बोसे की तलाश में.
लोगों ने रोका. टोका, खूब मनाया कि एक बोसे की कीमत ही क्या है. पर किस्सा जानता था बोसा तो बोसा है.
लौटा अपने फिर उन्हीं दरकती सीढ़ियों में जहां वो बैठी थी किस्सा सुनने....अधखुली पलकों से उसने किस्से को देखा था और आंख मूंद ली थी ये कहते हुए...बस एक छोटा सा किस्सा सुना तो दो.
किस्से ने सुनाना शुरु किया वही किस्सा जिसका नाम था...किस्सा एक बोसे का.
किस्सा खत्म हुआ तो बोसा किस्से के गालों पर था. ढलका हुआ सा, दम तोड़ता हुआ सा...किस्सा अब भी गली गली फिरता है एक तारा लिए और गाता रहता है अकेला किस्सा एक बोसे का.
 -
जे सुशील

Friday, October 11, 2013

Hafiz Ghazal 1


Where is sensible action, & my insanity whence?
See the difference, it is from where to whence.
From the church & hypocritical vestments, I take offence
Where is the abode of the Magi, & sweet wine whence?
For dervishes, piety and sensibility make no sense
Where is sermon and hymn, & the violin's music whence.
Upon seeing our friend, our foes put up their defense
Where is a dead lantern, & the candle of the sun whence?
My eye-liner is the dust of your door and fence
Where shall I go, tell me, you command me whence?
Take your focus from your chin to the trap on the path hence,
Where to O heart, in such hurry you go whence?
May his memory of union be happy and intense
Where are your amorous gestures, & your reproach whence?
Make not restlessness & insomnia, Hafiz's sentence
What is rest, which is patience, and sleep whence?

काहे को ब्याहे बिदेस अमीर खुसरो

काहे को ब्याहे बिदेस, अरे, लखिय बाबुल मोरे 
काहे को ब्याहे बिदेस 

भैया को दियो बाबुल महले दो-महले 
हमको दियो परदेस 
अरे, लखिय बाबुल मोरे 
काहे को ब्याहे बिदेस 

हम तो बाबुल तोरे खूँटे की गैयाँ 
जित हाँके हँक जैहें 
अरे, लखिय बाबुल मोरे 
काहे को ब्याहे बिदेस 

हम तो बाबुल तोरे बेले की कलियाँ
घर-घर माँगे हैं जैहें 
अरे, लखिय बाबुल मोरे 
काहे को ब्याहे बिदेस 

कोठे तले से पलकिया जो निकली 
बीरन में छाए पछाड़ 
अरे, लखिय बाबुल मोरे 
काहे को ब्याहे बिदेस 

हम तो हैं बाबुल तोरे पिंजरे की चिड़ियाँ 
भोर भये उड़ जैहें 
अरे, लखिय बाबुल मोरे 
काहे को ब्याहे बिदेस 

तारों भरी मैनें गुड़िया जो छोडी़ 
छूटा सहेली का साथ 
अरे, लखिय बाबुल मोरे 
काहे को ब्याहे बिदेस 

डोली का पर्दा उठा के जो देखा 
आया पिया का देस 
अरे, लखिय बाबुल मोरे 
काहे को ब्याहे बिदेस 

अरे, लखिय बाबुल मोरे 
काहे को ब्याहे बिदेस 
अरे, लखिय बाबुल मोरे 

इस रचना के कुछ अंशो को हिन्दी फ़िल्म उमराओ जान के लिये जगजीत कौर ने ख़्य्याम के संगीत में गाया भी है
kavitakosh से 

भटक कर चला आना

 अरसे बाद आज फिर भटकते भटकते अचानक इस तरफ चला आया. उस ओर जाना जहां का रास्ता भूल गए हों, कैसा लगता है. बस यही समझने. इधर-उधर की बातें. बातें...