Sunday, September 23, 2018

भूखे की डायरी

- तुम्हारे जाने के बाद लग रहा है मैं एक ब्रेक पर हूँ।
- मुझे इस ब्रेक की जरूरत थी
- लगभग ज्यादा से ज्यादा अकेले रहने की कोशिश करता हूँ।
- अभी दो दिन पहले भूख से रोने लगा
- मैं समझ नहीं पाता भूख का ििइंतजाम मैं क्यों नहीं कर पाता
- अच्छा भी लग रहा है और एक खालीपन भी
- लेकिन ये खालीपन बेचैन नहीं कर रहा
- कभी कभी तो पूरा दिन बिस्किट खा कर रह जा रहा हूँ
- दफ्तर में क्यों रणनीतिक नहीं हो पाता
- प्रोफेशनल स्पेस में विद्रोह और भावुक होना आत्मघाती है
- फिर भी हो जा रहा हूँ
- बंगलोर जा रहा, शायद वहां थोड़ा और तसल्ली से रह पाऊँ
- मैं न एक्टिविज्म कर रहा और न जर्नलिज्म

  • - इस सच को दिल लेकिन मान नहीं पा रहा।

Wednesday, September 19, 2018

थर्ड क्लास लोग


इस मोहल्ले का सबसे थर्ड क्लास ढ़ाबा है। नाम है पंजाबी ढ़ाबा। लेकिन वहां काम करने वाले सब के सब बिहारी। वहां खाने वाला आदमी सब भी बिहारी। थर्ड क्लास लोग। जो सस्ता और वाहियात ही खाते रहते हैं। पानी भी ये लोग यही पीते हैं, सप्लाई वाला। इसी पानी का दाल है, उसी को रोटी में मिला-मिला खा रहे हैं। बिमार भी नहीं पड़ते। एकदम पत्थर के बने हैं।

बारह-बारह घंटे जी तोड़ कामचोरी करके आते हैं। थकते भी नहीं हैं। बैठकर जियो के थर्ड क्लास 15 सौ रुपये वाले फोन में विडियो देख रहे हैं। इतना छोटा डिस्पले में अपनी छोटी-छोटी आँखे गड़ाये ये लड़का 15 साल का भी है कि नहीं। देश में तो 18 साल पहले से सब पढ़े, सब बढ़े अभियान चला, लेकिन ये तो पक्का स्कूल नहीं गया लगता है। देखो तो कैसे मोबाईल में भोजपुरी गीत देख रहा है। सर में तेल चुपड़ कर बैठा है। देश में क्या हो रहा, कोई खबर ही नहीं। फ्रीडम ऑफ स्पीच, डिसेंट, यूनिवर्सिटी पर हमला, एक्विस्टो पर हमला, मंदिर, मस्जिद, गाय, गोबर किसी चीज की चिंता ही नहीं है इसे।

अपने गरीबी और गाँव से भागकर यहां चला आया है। शहर की छाती पर बैठकर अपना हिस्सा मांग रहा है। बेवकूफ कहीं का। शहर हिस्से में देता क्या है। वो आठ बाई दस का कमरा। जिसमें पांच लोग एक साथ सोते हैं। या शिफ्ट में सोने जाते हैं।
ये लोग धरती पर हैं क्यो। क्यों नहीं कहीं और चले जाते हैं। शहर की चकाचौंध। वातानुकूलित हवा। तेज रफ्तार। हंसी-ठहाके। कहीं तो फिट नहीं बैठते ये। इनको तो होना ही नहीं चाहिये।
और मैं यहां क्या कर रहा हूं। ये खाना बनाने वाली नौकरानी भी न। हर हफ्ते छूट्टी चाहती है। अरे, छूट्टी, वीकॉफ, वीकेंड हम पढे-लिखे, मीडिल क्लास वालों के लिये है या इनके लिये। हमने लड़ी है लड़ाई आठ घंटे काम, आठ घंटे आराम और आठ घंटे मन के काम का। इन नौकरों को, इन मजदूरों को। इनको तो चौबिस घंटे काम करना चाहिए। अच्छा कम से कम अठारह घंटे और सात दिन तो करना ही चाहिए। लेकिन नहीं, उसमें भी इन्हें बिमार पड़ जाना है। गाँव अपने परिवार के पास भाग जाना है।

ढ़ाबे में एक झूमता हुआ तीसरा थर्ड क्लास मजदूर आया है। दारु क्यों पीते हैं ये लोग। ड्रिंक करने का सलीका होता है। बड़ी-बड़ी पार्टियों में, बड़े-बड़े पब में बैठकर दारु पीना एक बात है, लेकिन ये लोग। ये डिजर्व नहीं करते दारु पीना। ना, ना। ये गरीब हैं क्योंकि ये दारु पीते हैं। अच्छा दारु बस उनको पीना चाहिए जो नाले के भीतर घुसकर सीवर की सफाई करते हैं। बदबूदार काम है। दारु पीये बिना होगा नहीं। गैस से मर भी जाते हैं तो पता नहीं चलता इन्हें। बस लाश बाहर आती है।
खैर, देश में क्लीन इंडिया कैंपेन चकाचक चल रहा है। 530 करोड़ तो सिर्फ एडवरटिजमेंट में खर्च हुए सरकार के। बहुत खर्च हो रहा है क्लीन इंडिया पर। अब सीवर सफाई का काम तो मशीन से नहीं करवा सकते न। बहुत खर्च आयेगा उसमें।

मन भन्ना गया। गरीबों को देखकर। गरीबी पाप है। पिछले जन्म में जो पाप करता है इस जन्म का गरीब है।
अच्छा हम चलते हैं। किसी कैफे से चाय का फोटो इंस्टाग्राम पर पोस्ट करेंगे। मन भन्ना गया।

Monday, September 17, 2018

तुमने खोया है कभी ?

एकबार

तुर्की के प्रेम कवि जमाल सुरैया ने अपनी कविता में पूछा,
"तुमने अपने पिता को खोया कभी?
मैंने खोया है एक दफा और मैं अंधा हो गया"

मैंने भी खोया है
अपने पिता को
अपने दोस्त को
अपने प्रेम को
अपनी यादों को

लेकिन मैं तय नहीं कर पाता कि किसे खोने का दुख जिन्दगी भर रहेगा
किसे खोने के बाद मैंने खुद को अँधा महसूस किया,

मैंने अपने पितो को खोया
लेकिन
मैं भूखा नहीं मरा,

मैंने अपने दोस्तों को खोया
लेकिन
मैं अकेला नहीं हुआ ।

मैंने अपने प्रेम को खोया
लेकिन
मेरा प्रेम नहीं मरा

मैंने बहुत सारी यादों को खोया
लेकिन
स्मृतिविहीन नहीं हुआ ।।

हां, थका जरुर।

हर खोने के बाद
थोड़ा सा ज्यादा ही
थका।
क्या तुम कभी किसी के खोने से थके कभी?

बेकाबू

 रात के ठीक एक बजे के पहले. मेरी बॉलकनी से ठीक आठ खिड़कियां खुलती हैं. तीन खिड़कियों में लैपटॉप का स्क्रीन. एक में कोई कोरियन सीरिज. दो काफी...