Sunday, June 23, 2019

सुबह सुबह की बात है..

सुबह जगा तो। गर्मी कम थी। लगा धूप ने थोड़ी आज नरमी बरती है। चाय बनाया। माँ भी है। मैं मेज पर बैठे-बैठे ये लिख रहा हूं तो वो बॉलकनी में बैठी चाय पी रही है।

कमरे औऱ बॉलकनी को एक पतला पीला पर्दा बांटता है। मां ने पीली साड़ी पहनी है। काली छिट का। माँ को आये कुछ दिन हुए। वो लगातार फोन पर है। उससे लोग छूटते ही नहीं। मैं सोचता हूं।

कमरे में गांधी भजन। लता मंगेश्कर की आवाज में। अल्ला तेरो नाम। फिर किसी ने वैष्णव जन को ते कहिये गाया।

कितना सूकून है। मैं बेड पर लेटे लेटे सामने देखता हूं। आज गमलों में पानी माँ ही देगी। मैं मटन बनाऊंगा। ये अकेले रहने की आदत इतनी अच्छी भी नहीं है। मैं सोचता हूं।

कितना सारा टू-डू लिस्ट की पर्ची मेज के सामने टंगी है। लेकिन कोई हड़बड़ी नहीं। कोई एनजाईटी नहीं। न बाहर, न मन में। बस यही।

Monday, June 17, 2019

मासूमियत का...

कुछ लोग होते हैं बेहद मासूम

इतने मासूम कि अपनी मासूमियत से उन्हें घृणा होने लगे

लेकिन दूसरे उसे समझते हैं ढ़ोगा।

बहुत लोगों को तो ये यकीन ही नहीं हो पाता कि इस दुनिया में मासूम लोग भी हैं।

कई बार ही लगता है मासूमियत का आचार बनाकर इस गरमी में उसे सूखने के लिये छत पर छोड़ आना चाहिए।
गर्मी कितनी है इन दिनों..मतलब पिछले हफ्ते तो ऐसे बीते, कट रहे हों जैसे।

फिर दो दिन से बारिश न होने और आकाश के बादलों को देखकर मुस्कुराने में बीते

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बहुत ज्यादा अंदर से आउटरेज का फील करना बहुत बुरा भी नहीं है, या है बुरा पता नहीं।

कितना कुछ दिमाग में ही है हमारे। अगर उसको कहने लग जाओ तो ज्यादातर चीजें कितनी आसान हो जायेंगी।

नींद के मामले में मैं थोड़ा कच्चा हूं

नींद और मेरा रिश्ता। मेरे साथ रहने वाले मुझसे रश्क करते हैं। उन्हें लगता है मैं नींद का लकी आदमी हूं। बात सच भी है। मैं पांच सेकंड या दस सेकंड के भीतर सो जाता हूं।

बहुत सारे वक्त में ऐसा लगा है लोगों को कि मैं उनकी बात नहीं सुन रहा, या कि मैं बहाना करके नींद में चला जाता हूं। जबकि नींद बहुत तेजी से आती है मुझे।

लेकिन मैं ये भी एक्सपिरियेंस करता हूं कि नींद की एक सीमा है। एक हद। उस हद तक अगर मैं जग जाउं तो फिर मुझे इनसोमैनिक होने से कोई नहीं रोक सकता।
नींद को जीत लेता हूं। उस एक हद को पार करते ही। लेकिन ऐसा बहुत कम ही हो पाता है।

दुर्भाग्य है कि ज्यादातर मामलों में शायद मैं जब अकेले होता हूं तभी ये जीत होती है। बहुत अकेले होने पर ही।

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क्या मैं 
बहुत बेचैनी
मुझे लगता है
मैं इंट्रोवर्ट हूं
ऐसा लोग भी कहते हैं मुझसे
मैं बात ही नहीं करता
मुझे इस बारे में पढ़ना चाहिए
कभी सोचा ही नहीं ऐसा कुछ
कभी किसी ने बताया भी तो नहीं
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बेचैनी का भी हल निकलेगा।
मैं बहुत लिख नहीं पाता तो इसलिए कि अब मुझे कुछ नया लिखना है
और नया लिखने के लिये 
नये अनुभव बेहद जरुरी हैं।

शहर के भीतर 
या शहर से काफी दूर


बेकाबू

 रात के ठीक एक बजे के पहले. मेरी बॉलकनी से ठीक आठ खिड़कियां खुलती हैं. तीन खिड़कियों में लैपटॉप का स्क्रीन. एक में कोई कोरियन सीरिज. दो काफी...