Thursday, August 8, 2013

सफर जारी है...

महान जंगल के किसी पहाड़ी चोटी की चढ़ाई के दौरान

पीठ पर लैपटॉप बैग लादे। बैग में लैपटॉप के अलावा एकाध जोड़ी जींस-कुर्ता। ब्रश, कुछ कागज के पन्ने, एक या दो किताब। इसी तरह की बेहद जरुरी सामान। और कंधे पर झूलता लाल रंग का बैग।
पिछले कुछ महीनों में जो भी दोस्त मिले हैं। ऐसे ही देखा है मुझे-हाफ पैंट से थोड़ी लम्बी पैंट पहने। जेब में चार हजार में ही अच्छी तस्वीर उतारने वाला नोकिया फोन।  कभी भोपाल। कभी जबलपुर। कभी सतना-रीवा-सिंगरौली। या फिर बनारस। और दिल्ली।
ट्रेन के एसी बोगियों से लेकर जनरल डिब्बों तक का सफर। कभी-कभी तो टिकट वेटिंग जाने पर बोगी के फर्श पर ही अखबार बिछा सो जाता हूं। सबसे ज्यादा मजा स्लीपर बोगी के कम भीड़ वाले डब्बे में। खिड़की के पास। हवा आ रही है मैं कान में ईयरफोन लगा लय मिला रहा हूं। सारी बोगी से बिल्कूल बेपरवाह- लाल बैंड से लेकर हबीब जालीब, कैलाश खैर तक।
कटनी रेलवे स्टेशन के पास

भोपाल टू जबलपुर रास्ते की तस्वीर

सतना से बनारस जाते हुए पसंदीदा जगह पर बैठ कर



भैराघाट में
निर्मल वर्मा के एक ट्रैवलॉग से पता चला कि यूरोप में हिच-हाइकिंग करके स्टूडेंट लाइफ में घूमा जाता है। एक दिलचस्प और सस्ता तरीका यात्रा करने का। "सड़क के किनारे खड़े होकर सामने गुजरती हुई मोटरों, लारियों या ट्रकों को रोकने के लिए हाथ हिलाते हैं, और घंटों इसी तरह खड़े रहते हैं, जब तक कोई ड्राइवर दया करके उन्हें भीतर नहीं बुला लेता। इसी तरह लिफ्ट लेते हुए वे रास्ते तय करते रहते हैं"।
निर्मल लिखते हैं- "अक्सर लड़कियों के लिए 'लिफ्ट' लेना अधिक आसान होता है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि लड़कियां अपने पुरुष-साथियों को पीछे छिपा लेती हैं और जब उन्हें 'लिफ्ट' देने के लिए कोई कार रुक जाती है, तो वे इशारे से इन्हें बुला लेती हैं। ड्राइवर बेचारे को तब न केवल उन्हें बल्कि उनके प्रेमियों को भी अपनी कार में ढोना पड़ता है"।
इंडियन साधुओं के धर्म पक्ष को छोड़ दें तो उनकी  फक्कड़ी खूब ललचाती है। फिलहाल अपने साथ काम को लिए घूम रहा हूं। लेकिन अगला प्रोजेक्ट बिना मतलब-बेमकसद देश घूमने का रक्खा है। इन्हीं साधुओं के साथ हो लूंगा कुछ दिन। बिना जाने-समझे-सोचे। कभी इस स्टेशन। कभी उस बस। कभी इस देस-कभी उस देस।
चल रे मांझी
आज फिर कुछ घंटे बाद निकल जाउंगा..भोपाल वाया जबलपुर। सफर जारी है.....

भटक कर चला आना

 अरसे बाद आज फिर भटकते भटकते अचानक इस तरफ चला आया. उस ओर जाना जहां का रास्ता भूल गए हों, कैसा लगता है. बस यही समझने. इधर-उधर की बातें. बातें...