Tuesday, April 30, 2013

नर-मादा -इतिहास-भूगोल

 
डेनियल गोवर का स्केच

काफी अगंभीर मीडियम होने के बावजूद कभी-कभी फेसबुक पर गंभीर लिखावट अगंभीर रुप में मिल ही जाता है। एकदम स्पोन्टेनियस, अराजक, तितर-बितर तरीके से लिखे जाने वाले ये स्टेट्स अगर एक जगह इकट्टा कर दें तो एक पूरा का पूरा कहानी, उपन्यास या कविता जैसा कुछ हो जाता है।
बीच-बीच के अंतराल पर जे सुशील का लिखा भी कुछ ऐसा ही बन जाता है, जिसको एक जगह समेटने की तलब होने लगती है और फिर जब इसे पूरी समग्रता में समेट लो तो ये छोटे-छोटे स्टेट्स किसी कविता, कहानी या उपन्यास टाइप हो जाते हैं।
 पिछले दिनों इतिहाल और भूगोल का मेटाफर रचते हुए जिस तरह उन्होंने प्रेम, देह, गांव-शहर, यौनिक संबंध, विछोह, मेट्रो फिजिक्स, शंका और प्रेम के इन्टरनल  लाजिक को लिखा है, इनको पढ़कर बरबस ही आपको ernesto-cardenal  याद आ जाते हैं।  एर्नेस्तो कार्देनाल की कविताएं एपिग्राम्स या फिर कहें सूक्तियों की तरह हमारे सामने आती हैं लेकिन इन एपिग्राम्स को एक जगह मिला दीजिए तो पूरा का पूरा एक एपिक या महाकाव्य आपके सामने होता है।

सुशील  एर्नेस्तो कार्देनालकी कविता तोते की तरह ही अपने आसपास की दुनिया को अपना मेटाफर बनाते हैं.
एर्नेस्तो की कविता तोते में साम्राज्यवादी अमरीका से त्रस्त जनता तोते के रुप में है तो सुशील के यहां आधुनिक प्रेम की मुलामियत और त्रासदी की कहानी इतिहास-भूगोल के मेटाफर में है।
पूरी लिखावट नीचे पढ़े-

हर लड़की का इतिहास होता है और हर लड़के का भूगोल...वैसे, हर लड़की को लडके के इतिहास में और हर लड़के को लड़की के भूगोल में रुचि होती है...इन भूगोल-इतिहास की चट्टानों पर प्रेम की दूब उग जाती है...इधर उधर छितर बितर।
  इतिहास और भूगोल की लड़ाई जहां खत्म होती है वहां दर्शन पैदा होता है....बाल-दर्शन।
.मैं इतिहास में पीछे था...वो भूगोल में आगे थी...दूब ने दोनों को पीछे छोड़ दिया...और हम फ्रायड की बांहों में झूल गए.

  धड़कते-धड़कते दिल दीवार हुआ जाता है...लिखते लिखते लिखना लाचार हुआ जाता है...। हम तो पड़े थे उसके भूगोल में, और वो अब इतिहास हुआ जाता है।
भूगोल में बैठ कर इतिहास लिखना कैसा होता होगा...और इतिहास में बैठ कर भूगोल के बारे में सोचना
  एक दिन इतिहास ने भूगोल को गोल कर दिया...भूगोल के गोल होते ही दोनों गार्डन के इडेन में पहुंच गए......
भूगोल के गोल होने से दूब सूख गई और फिर गोल गणित का जन्म हुआ जिससे फिर आगे चलकर लॉजिक, फिजिक्स और मेटाफिजिक्स की शुरुआत हुई।
बड़े शहर में हर बात छोटी होती है और छोटे शहर में हर बात बड़ी......वैसे बड़े शहर में हर बात भूगोल पर अटकती है....छोटे शहर में हर बात इतिहास पर।
  भूगोल बदलता है तो इतिहास बनता है और नया भूगोल पुराना इतिहास ज़रूर पूछता है लेकिन इतिहास को सिर्फ भूगोल में रुचि होती है. इतिहास भूगोल का इतिहास कभी नहीं पूछता। 
  इतिहास की नियति है भूगोल के पीछे भागना..उसे पकड़ना और फिर उसे इतिहास में बदल देना
  एक दिन इतिहास ने भूगोल के सामने अपने इतिहास के पन्ने पलटने शुरु किए. भूगोल ने ये देखकर अंगड़ाई ली और अपना जुगराफिया बदला. जुगराफिया बदलते ही इतिहास का मुंह खुला का खुला रह गया और फिर दोनों मिलकर दूब उगाने लगे.
. ...और फिर एक दिन भूगोल ने कहा इतिहास से कि मुझे तुम्हारा इतिहास पढ़ना है. इतिहास के पास इसका कोई जवाब नहीं था. उसे अपने पुराने भूगोल की याद सताने लगी और वह सामने के भूगोल को ताकते हुए सोचने लगा काश कि दूब उगने लगे फिर से...
नया भूगोल मिलते ही इतिहास अपना पुराना इतिहास भूलना चाहता है लेकिन भूगोल को हमेशा इतिहास के पुराने इतिहास में रुचि होती है
  इतिहास हमेशा भूगोल भूगोल खेलना चाहता है और भूगोल हमेशा इतिहास इतिहास . इस खेल में नुकसान हमेशा दूब का होता है.
  भूगोल इतिहास की रगड़ में सबकुछ खत्म हो चुका था. बरसों बीत गए थे. झुर्रियों पड़े हाथों में हाथ थे. इतिहास भूगोल के इतिहास में गुम था और भूगोल इतिहास के भूगोल के इश्क में उलझा हुआ-सा था.


बेकाबू

 रात के ठीक एक बजे के पहले. मेरी बॉलकनी से ठीक आठ खिड़कियां खुलती हैं. तीन खिड़कियों में लैपटॉप का स्क्रीन. एक में कोई कोरियन सीरिज. दो काफी...