Friday, January 18, 2019

मौसम के बारे में बात करें कुछ

आज मौसम के बारे में बात करने का बहोत मन हो रहा है। इतनी ठंड है। सर्दी में पैदल चलने का सुख। अपनी राईटिंग टेबल पर बिना मोजे का बैठ जाओ तो ठंड लगने लगती है। ज्यादा देर बैठने का मन ही नहीं होता।

इस बीच कितना उत्साह है। गर्मियों वाला उत्साह। लेकिन सड़क कितनी सूनी-सूनी सी लगती है। दिल्ली के ये उजाड़ दिन हैं। आईएनएस बिल्डिंग से निकल कर मंडी हाउस की तरफ जाओ तो पूरा विराना सा लगता है। फूल के पेड़ सिर्फ पत्तियों के सहारे दुपहर की धूप सेंकते दिखते हैं। आसमान में जेट जहाजों की तेज आवाज उस विरानेपन से टकराती है।

आप जिस शहर में होते हैं, वहां के मौसम को सबसे करीब से समझते हैं। सर्द दिनों से लेकर बरसात तक यह समझ फैल जाता है।

आज मैं अपने एक दोस्त से कह रहा थाः कभी-कभी मन होता है पूरा का पूरा एक केक खरीद कर खुद खा लूं। आज केक खाने का सच में बड़ा मन हुआ।

उसने कहाः अकेले पूरा का पूरा केक नहीं खा पाओगे।

मैंने भी रहने दिया।
उसने सच ही कहा।

शाम को खूब खूब ठंड मेें भी चाय पीते हुए कहीं बैठने का अपना सुख है।
देर शाम घर में लौट कर चुपचाप सोचते जाने का भी।

मौसम के फूट्नोट्स दर्ज करते-करते मैं क्या-क्या सोचने लगा।

मुझे लगता है मैं बात करते-करते भटक जाता हूं। हवा में बात करने लगता हूं। मौसम पर बात कर रहा था, तो वहीं टिके रहना चाहिए था।

जैसे आजकल धूप कितनी कम दिखती है। जैसे धूप ने हमारे दिनों को घेर लिया है। जैसे सर्द रातें तन्हा बना देने का अपना मजा है।

कभी-कभी लगता है इस मौसम का हम पर कितना असर है। कोई अलाव खोजने का मन क्यों नहीं होता..

हाहाहाहाहा....व्यर्थ के नक्शे में सबकुछ।

एक लंबी कविता लिखने सा मन होता है। कहानी भी। मौसमों के ब्योरे, कैसा रहेगा...

सर्दियां जबतक हैं, तभी तक कविता भी लिखी जा सकती है, कहानियां भी। गर्मी में तो कितना पसीना आने लगता है।

मैं जो कहना चाह रहा वो क्यों नहीं कह पा रहा...
मैं जो लिखना चाह रहा वो क्यों नहीं लिख पा रहा.....

क्या मैं सारे मौसमों से पीछा छूड़ाना चाहता हूं...क्या मैं मौसम के बारे में सीधा-सीधा लिखने से बच रहा हूं..इस जनवरी के बारे में...

शायद हां,
लेकिन फिर भी...

हर मौसम में खुश रहना चाहिए...खूब सारा ताकत बना रहना चाहिए...खूब सारा मन को होता रहना चाहिए...खूब सारा याद बना रहना चाहिए..खूब सारी जिन्दगी, हँसी और खुशी। 😔

बेकाबू

 रात के ठीक एक बजे के पहले. मेरी बॉलकनी से ठीक आठ खिड़कियां खुलती हैं. तीन खिड़कियों में लैपटॉप का स्क्रीन. एक में कोई कोरियन सीरिज. दो काफी...