Thursday, July 14, 2016

Its doesn't matter

cemetery में जाकर कैसा लगता है?
सबकुछ कितना फ़िज़ूल लगता है। अबतक जो भी किया एक बेकार की मेहनत। हमारा अबतक का किया, जिया , लिखा, कहा सब void दीखता है।
अंत में it's doesn't matter वाली बात कितनी सच्ची लगती है।
हमारी पूरी journey का अंत यही है- it's doesn't matter
और हमारी इस journey को भी कौन decide कर रहा है- एक  दुनिया जिसने बहुत सारे नियम, सिस्टम , प्रोसेस बनाये हैं - कि हमें पैदा होना है, स्कूल जाना है, कॉलेज जाना है, नौकरी करनी है, कब हंसना है, कब दुखी होना है, कब और किससे बात करनी है, कब मिलना है, कब सफर में रुकना है, कब भागते जाना है- हर चीज़ , हर desire को पूरा करने का एक बंधा-बंधाया नियम है- एक सिस्टम।
हम बस उसे ही फॉलो करते चलते हैं। बहुत सारी चालबाजियां, तिकड़म, शिकायतें, नफरत, प्रेम, गुस्सा सब करते हैं। हम जीवन को नदी बनाने की कोशिश करते हैं, लेकिन होता वो mathmatics है। हिसाब से किसी को खुश करना, किसी को दुःख देना, बात, मुलाक़ात। हर काम नफा-नुकसान के तराजू पर तौलते रहते हैं। जबकि अंत में सच में कुछ फर्क नहीं पड़ता। सारा जीवन, 'महानता' से भरे काम, achievement, failure सब एक illusion से ज्यादा क्या है? हम जो जी रहे हैं - वो सच में वही पत्थर है जिसे हम हर रोज ऊपर चढ़ाते हैं और वो हर रात फिर लुढ़क कर नीचे गिर आता है। हम फिर अगले दिन उसे चढ़ाने की कोशिश करते हैं। अब बस यह है कि इस पूरी कोशिश में आप कितना खुद को सिस्टम से आज़ाद कर पाते हैं, कितना अच्छा-बुरा सोच पाते हैं, कितना प्रेम दे पाते हैं, कितना अपने लिए, अपने मन के लिए जी पाते हैं, कितना सीखने से ज्यादा दुनिया का सिखाया unlearn कर पाते हैं। क्योंकि अंत में it's doesn't matter

बेकाबू

 रात के ठीक एक बजे के पहले. मेरी बॉलकनी से ठीक आठ खिड़कियां खुलती हैं. तीन खिड़कियों में लैपटॉप का स्क्रीन. एक में कोई कोरियन सीरिज. दो काफी...