Tuesday, November 29, 2011

आम आदमी की सरकार का हाथ किसके साथ?


धन्य हो कांग्रेस सरकार
एफ1 रेस कराने के साथ ही यह बात पक्की हो गयी थी कि हमारी तथाकथित आम-आदमी की सरकार कैसे आम किसानों को ही इस पूरे व्यवस्था से बाहर धकेल देना चाहती है। और केवल किसान ही क्यूं अब तो असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले उन 20 करोड़ लोगों को भी हाशिये पर धकेलने की पूरी तैयारी केन्द्र सरकार ने कर ली है। विपक्षी दलों के विरोध के साथ-साथ खुद सरकार में सहयोगी दल और केरल काग्रेंस के विरोध के बावजूद केन्द्र सरकार इस जिद्द पर अड़ी हुई है कि खूदरा क्षेत्र में 51 प्रतिशत एफडीआई को इजाजत दिया जाएगा। सरकार की यह हठ समझ से परे है। आखिर वह कौन सी वजह है जिससे सरकार अपने हठ पर अड़ी हुई?
     सरकार इसके पक्ष में तर्क दे रही है कि इससे मंहगाई कम होगी और खूदरा क्षेत्र को नुकसान नहीं होगा। यह दलील भी समझ से परे है पिछली बार इसी मंहगाई के आड़ में सरकार ने खुदरा क्षेत्र में बड़ी पूंजी निवेश को इजाजत दी थी लेकिन आम लोगों को किसी तरह का राहत मंहगाई से नहीं मिला।
यह माना जा सकता है कि वालमार्ट जैसी कपंनियों के आने के बाद आम-उपभोक्ता को फौरी राहत मिल सकती है क्योंकि उनके पास बेतहाशा पूंजी है और बैंकों से उन्हें कर्ज भी आसानी से मिल सकता है। ऐसे में वो कुछ समय तक घाटे में रहकर भी अपना काम चला सकती हैं लेकिन उनके प्रतिद्वंदी छोटे-छोटे दुकानदार इस खेल से खूद बाहर हो जायेंगे। ऐसी स्थिती में खूदरा बाजार में उन बड़ी कंपनियों का एकाधिकार हो जाएगा। फिर वो अपने हिसाब से कीमतें तय करने को स्वतंत्र होंगे।
   सरकार दुसरा तर्क यह दे रही है कि छोटे-छोटे दुकानदार वालमार्ट जैसी कंपनियों के साथ हाथ मिलाकर खुद को बाजार में बनाए रख सकती हैं। यह तर्क अपने-आप में हास्यस्पद है। पहली बात तो इस बात को मान भी लिया जाए तो इन बड़ी कंपनियों से हाथ भी वही मंडी में बैठे बड़े-बड़े व्यापारी मिलायेंगे न कि हमारी गली का छोटा दुकानदार। दूसरी बात कि अगर ये बड़े व्यापारी हाथ मिलाते भी हैं तो उन्हें वालमार्ट के शर्तों पर ही ऐसा करना पड़ेगा।
   सरकार कह रही है कि यह निवेश केवल 53 शहरों में किया जाएगा। तो अगर मंहगाई कमने की बात सही है तो क्यूं नहीं इसे पूरे देश में लागू क्या जा रहा है? क्या केन्द्र सरकार खूद असमंजस में है? या फिर वो ये सब केवल डब्लू.टी.ओ के दबाव में कर रहा है?
सरकार का यह कहना भी सही नहीं है कि किसानों को इसका सीधा लाभ मिलेगा। क्योंकि कोई भी कंपनी प्रत्येक किसान के घर पर जाकर फसल नहीं खरीदेगी। वो भी ऐसा उन दलालों के माध्यम से ही करेगी। ,जो अभी इस क्षेत्र में सक्रिय हैं।
यह भी खबर आ रही है कि अकेले वालमार्ट ने इस निवेश नीति बनाने के लिए की जा रही लांबिग में कुल 57करोड़ रुपये खर्च किये हैं।
वाह रे देश हित।
धन्य कांग्रेस सरकार।

1 comment:

  1. bhut sahi likha hai aapne avinash ji... isi tarah likhte rhaiye...

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