Thursday, June 27, 2013

मुस्लिमों को जाना सख्त मना है, मतलब हिन्दुओं के बाप का है ?

दीवाल पर बेशर्मी से लिखा ये पोस्ट
आपका ये महान देश तो बहुत धर्मनिरपेक्ष है भाई। हर कदम पर हर जगह पर ये धर्मनिरपेक्षता रह-रह कर चूता रहता है। सच बात तो यह है कि आपकी सरकार, समाज कुछ भी धर्मनिरपेक्ष नहीं है। धर्मनिरपेक्षता का ढोल पीटना बंद कीजिए। बिहार के राजगीर में गर्म कुंड में नहाने वालों के लिए जो शर्मनाक शर्त उस दीवाल पर चिपका है न वो आपकी धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा उतार फेंक दे रहा है। सवाल तब और महत्वपूर्ण हो जाता है जब उसी राज्य के मुखिया हाल ही में सांप्रादायिकता के खिलाफ अपनी सरकार तक दांव पर लगाने का दावा करते दिखते हैं। 
और हां, समाज का मामला बता कर सरकार यहां अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। धर्म को जाने दीजिए लेकिन नेचर पर अधिकार का मामला तो है ही।
पटना के पत्रकार अभिषेक आनंद ने फेसबुक पर साझा किए अपने अनुभव..(मॉडरेटर)


साफ बात तो यह कि यह ब्रह्म कुंड या गरम कुंड नहाने तो छोड़िए पैर धोने लायक भी नहीं है। कम से कम गर्मियों के इस मौसम में तो कतई नहीं। लेकिन यहां पहुंचने से पहले की दीवार पर पंडाओं ने अपने पिता से मिले तमाम अधिकार के साथ लिखा है, "हिन्दुओं के सिवाय मुस्लिमों को जाना सख्त मना है।"
कानून और बाकी नियमों को ढेंगा दिखाते हुए पटना हाइकोर्ट का हवाला दिया गया है।
पहले तो 'नोटिस' देखकर ही हमारा दिमाग घूम गया। अबतक किसी चर्च, मस्जिद, मजार-मंदिर में ऐसे 'नोटिस' का अनुभव मिला नहीं था। लेकिन सामना तब हुआ जब मैं अपने मुस्लिम दोस्त Rizwan के साथ कुंड में जा रहा था। मैंने उससे कहा, लिखा है तो लिखा है, भाई चलो देखते हैं। लेकिन मनाही का धर्मसत्य वाक्य देखते ही धार्मिक रिजवान बाबू ने साफ मना कर दिया।
हम उसी चारदीवारी के अंदर, उस तरफ लौट गए जिधर मानव निर्मित कुंड यानी स्विमिंग पूल कुछ रुपए के टिकट के साथ स्वागत कर रहा था। बिना धर्म की रोकटोक के। लेकिन मेरे मन में इस ब्रह्म कुंड या प्राकृकिक कुंड में नहाने की कम, समझने की इच्छा बढ़ रही थी। (कहते हैं Water or Kund is a gift of Nature and Nature does not discriminate on the basis of religion!!)
रिजवान को बाहर अकेले छोड़ हम कुंड के पास पहुंचे। पैर की कुछ उंगलियां पानी में रखते ही असलियत का पता चल चुका था। तब पानी में पहले से बैठे लोगों ने कहा, 'एक पैर मत डालिए, दोनों पैर डालिए'। हमनें देख ली वह भी करके। बर्दाश्त एक सेकेंड भी नहीं हुआ। तब साथ गए तीसरे धार्मिक दोस्त ने धर्मान्धता को साइंटिफिक तर्क से जस्टिफाई करना शुरू किया। लेकिन खुद पानी में आधा मिनट भी नहीं रह सका।
सोचा पटना आकर डीएम को फोन करुंगा कि क्या सच में हाईकोर्ट का ऑर्डर है? लेकिन गूगल के पन्ने तलाशा तो सब कुछ साफ हो गया। हाईकोर्ट के जिस फैसले की बात कही गई है वह आजादी से पहले और अंग्रेजों का फैसला है। फैसले देने वाले का नाम है Counrtrey Trel, फैसला है 1937 का। Counrtrey Trel पटना हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस था।
अब बाकी चीजों का आप अंदाजा खुद लगा लीजिए। रिटाअर्ड आईपीएस किशोर कुणाल कहते हैं कि कम से कम इसे बदलकर ऐसे लिखना चाहिए कि 'गैर हिन्दुओं को आने की मनाही है'। लेकिन राजगीर के पुजारी और पंडित इस बदलाव के खिलाफ भी बाप-बाप करने लगते हैं। 
अभिषेक आनंद हिन्दुस्तान पटना के साथ पत्रकारिता कर रहे हैं
 

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