Saturday, December 14, 2013

अश्लीलता के बारे में :- शुंतारो तानीकावा

 
गोपाल सून्या की एक पेंटिग
































कल रात जेएनयू में जुर्रत के एक नाटक को देखने के बाद इस अश्लील समाज के खिलाफ कई श्लील सवाल खड़े करने का मन हो रहा था, ठीक इसी समय आज मनीषा पांडे ने Do Communists Have Better Sex का लिंक भी फेसबुक पर शेयर कर दिया। कुल मिलाकर पूरा एक दिन अश्लील और श्लील सवालों के बीच ही झूलता रहा। इन दोनों की पृष्ठभूमि में शुंतारो तानीकावा की इस कविता को पढ़ा जा सकता है। जूर्रत के प्रोग्राम की चर्चा फिर कभी करने की योजना है। फिलहाल इस पोस्ट में
Do Communists Have Better Sex के लिंक को लगा रहा हूं।



चाहे कितनी ही अश्लील हो कोई फिल्म
वह उतनी अश्लील नहीं हो सकती
जितना प्रेमरत जोड़ा होता है एक.
अगर प्रेम कोई मानवीय चीज़ है
तो अश्लीलता भी मानवीय है.
लारेंस, मिलर, रोदां,
पिकासो, उतमारो, मान्यो कवि,
क्या वे कभी डरे अश्लीलता से? 
फिल्म नहीं होती अश्लील
हम हैं जो असल में अश्लील होते हैं
गरमाहट के साथ, कोमलता के साथ, शक्ति के साथ
और कितनी बदसूरती और शर्म के साथ
हम अश्लील हैं
रात और दिन अश्लील
किसी भी और चीज के बिना, अश्लील.

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