Thursday, February 22, 2018

कसमें, वादे, प्यार, वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या

आज जाने की जिद्द न करो
यूं ही पहलू में बैठे रहो

रातभर ही तुम याद आये। रात भर ही हम मरते रहें। रातभर ही लूटते रहे। रातभर बस बातें न हो सकीं। रातभर तुम्हें लिख न सका।

रातभर रहा खूब सारा वक्त। रातभर डरता रहा। एक घर था। हवेली जैसा। किराया काफी कम। हमने ले लिया। तुम डरते रहे। मैं हिम्मत करके जगा रहा।

हमदोनों बैठे रहे। मैंने तुम्हें रोके रखा। जान जाता रहा। तुम लौटे ही नहीं। बात इतनी सी है कि तुम...


No comments:

Post a Comment

बेकाबू

 रात के ठीक एक बजे के पहले. मेरी बॉलकनी से ठीक आठ खिड़कियां खुलती हैं. तीन खिड़कियों में लैपटॉप का स्क्रीन. एक में कोई कोरियन सीरिज. दो काफी...