Tuesday, August 18, 2020

हमें एवरेज होने से डर क्यों लगता है?

आजकल हर सुबह एक उदास ख्याल के साथ जगता हूं। एकदिन ख्याल आया कि मैं अपने घर पर हूं। इस कमरे, इस शहर से बहोत दूर।

फिर एकदिन लगा, मैं लिखना भूल गया हूं। अब मैं लिखना चाहता भी नहीं। शायद ऐसे ही हम अपने प्रेम को जाने देते हैं। जिन जिन चीजों से एक वक्त में हमें प्रेम रहा, उनके जाने को स्वीकार करने में लंबा वक्त लगता है।

शायद।

मैंने 'शायद' शब्द का खूब इस्तेमाल किया है अबतक। लेकिन वो अब बेतुका बचाव भर लगता है बस।

हां तो आज मैं एक दूसरे ही ख्याल के साथ जगा। खुद के औसत होने को हम क्यों नहीं स्वीकार कर पाते। हम क्यों नहीं स्वीकार पाते कि परफेक्ट होना ही आपका होना नहीं है। हम सब और कम से कम हममें से ज्यादातर औसत, मीडियोकर हैं और यही सामान्य बात है।

फिर मीडियोकर होने को लेकर इतनी घृणा क्यों?

क्यों हर काम में हमें परफेक्ट होने की कोशिश करते रहना है?

बीच बीच में रहकर भी जिन्दगी जीने में कोई हर्ज नहीं।

बहुत रोमेंटिसाइज्ड लाइफ से कहीं बेहतर है एक सामान्य जिन्दगी जीना, उसको सामान्य, सुंदर और सीमित बनाने की कोशिश करते रहना।

मुझे गुस्सा क्यों आ रहा है? यह सब लिखते हुए, किसपर ?

खुद के बीते ख्यालों पर। शायद.


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