Monday, January 2, 2012

हम डोम हैं अंदर कैसे आएं?


हम डोम हैं अंदर कैसे आएं?
मेरा गांव बिहार के बेगुसराय जिला मुख्यालय से 60कि.मी. 


दूर है।शायद इसी दूरी का नतीजा रहा है कि आज तक वहां 


बिजली और सड़क की सुविधा नहीं पहुँच पायी है।कहने को 


मिट्टी की सड़क तो है लेकिन वह भी तब तक जब तक कि 


वहां बारिश न हुआ हो।इस गांव में लगभग सभी जाति के 


लोग रहते हैं।मोहल्ले जाति के आधार पर बने हैं और आज


 भी हमारे घर का पता हमारे जाति के नाम पर ही तय होते 


हैं।बाभन टोली ,राजपुत टोली,चमार टोली और डोम टोली।

  गांव में सबसे 


ज्यादा नीचले क्रम


 में डोम टोली को 


जगह दिया गया है


।डोम जाति के लोगों 


के परछाई को भी बुरा 


अपशकुन माना जाता 


है।यदि कोई कथित 


उँची जाति के किसी 


व्यक्ति पर डोम जाति 


के किसी व्यक्ति की 


परछाई भी पड़ जाती है तो इसे अपशकुन मान कर गंगा जल 


छिड़का जाता है और उस डोम को जमकर डाँटा फटकारा जाता 


है।आज भी डोम जाति के लोग लाश जलाने के पेशे को ही


 अपनाए हुए हैं और यही उनके रोजी-रोटी का साधन बना हुआ 


है।
  पिछले दिनों की बात है मेरे घर में सत्यनारायण भगवान 


की कथा का आयोजन किया गया था।ऐसा रिवाज है कि इस 


कथा को सुनने के लिए गांव के सभी लोगों को आमंत्रित 


किया जाता है।हमारे घर से भी सबको न्यौता भेजा गया 


लेकिन डोम जाति को इस कथा को सुनने की इजाजत नहीं 


है।इसलिए उन्हें न्यौता नहीं दिया जाता।पुजा के बाद गांव के 


लोगों में प्रसाद का वितरण किया जाता है।उस दिन मैं प्रसाद 


ही बाँट रहा था कि एक चार साल का बच्चा प्रसाद लेने के 


लिए मेरे दरवाजे पर खड़ा हो गया।मैं जल्दी में था इसलिए 


उस बच्चे को मैंने घर के अंदर आकर प्रसाद लेने को कहा।उस 


बच्चे ने जवाब दिया,हम डोम हैं अंदर कैसे आएं?”
  उस चार साल के बच्चे के मुंह से इस जवाब को सुनकर मैं भीतर तक हिल गया।मैं सोचने को मजबूर हो गया।मैंने उस लड़के को अंदर बुला कर प्रसाद दिया।मैं सोचने लगा कि आखिर वह कौन-सी ताकत है जो इस छोटे से बच्चे के मन में इस बात को बैठाने का काम करती है कि वह डोम है और इसलिए अछूत भी।जबतक हमारे समाज में और उसके जड़ों में जातिवाद के बीज मौजूद रहेंगे तबतक हम इस अछूत होने की भावना को नहीं खत्म कर सकते।हम भले ही लाख कानून बना लें।यह समस्या किसी कानून से नहीं खत्म होने वाली।आखिर उस चार साल के बच्चे के पास तो किसी कानून का ज्ञान नहीं है।यह हमारे समाज के संस्कारों का मामला है और इसी स्तर पर हमें जातिवाद को खत्म करना होगा।
  आज भी जातिगत बुराईयों की बात सुनता हूँ तो उसी चार साल के बच्चे के शब्द सुनायी देने लगते हैं।हम डोम हैं अंदर कैसे आएं?’ और मैं अंदर तक भींग जाता हूँ,परेशान हो जाता हूँ। 

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