Sunday, February 5, 2012

दिल्ली में दो बिहार रहते हैं

दिल्ली में दो बिहार रहते है


एक बिहार है जो नागलोई,उत्तम नगर,मुण्डका से लेकर आनंद पर्वत और बापा नगर होते हुए नगली डेरी तक फैला 
हुआ है। यहां आपको एक हजार में 6 बाई 8 के कमरे मिल जाते हैं,जिसे तीन-चार लोग मिल कर शेयर करते हैं।
बाथरूम और वाशरूम जैसा ही कुछ एक में ही 5-7 कमरों के लिए बना होता है। किचेन के नाम पर एक छोटीसी गौस चुल्हा उसी 6 बाई 8 के कमरे में मिल जाता है। हर दिन अपने कमरे से 30-40 किमी का सफर तय कर ये अपने काम पर पहुंचते हैं। इस बिहार में मेहनत मजदूरी करने वाले लोग रहते हैं। कोई जूता फैक्ट्री में तो कोई किसी 
बिल्डिंग के तल्ले उपर बढ़ाने के लिए काम कर रहा है। बहुत लोग करोलबाग के किसी दुकान में भी 
लगे हुए हैं। इनकी सबसे बड़ी समस्या हेती है 6-8हजार में से कुछ खर्च करना और ज्यादा बचाकर घर भेजना।
  जिस दिल्ली के किसी अपार्टमेण्ट में एक ही फ्लोर पर सामने वाले फ्लैट में महीनों दो बहनों की लाश
पड़ी हुई मिलती है और लोग झांकने तक नहीं जाते। इसी दिल्ली के इन जगहों पर आपको सुबह शाम 
मुफ्त की चाय और हंसी-मजाक करने वाले लोग आसानी से मिल जाऐंगे। इस दौड़ती-भागती दिल्ली
में इन बस्तियों में रहने वाले एक-दूसरे के लिए समय निकाल लेते हैं।
  इन बस्तियों में रिश्ते तेजी से बनते हैं। हर दूसरा किसी का चाचा,चाची मामी मामा बन जाता है। हर शाम 
एक-दूसरे से तरकारी से लेकर रात के खाने तक का आदान-प्रदान होता है। सुबह में सब अपने काम की जल्दी में तो होते हैं लेकिन 
फिर भी हंसी-मजाक का दौर चलता रहता है।
  रोजी-रोटी के चक्कर में अपने घर से दूर चले आए इन प्रवासियों का जीवन इन्हीं छोटी-छोटी चीजों
की वजह से आसान हो जाती है। 
    

  एक बिहार है जो मुनिरका,कटवरिया सराय,बेर सराय से लेकर मुखर्जी नगर,विजय नगर और कमला नगर
तक फैले हुए हैं। यहां 8 बाई 10 के चार हजार से 12 हजार तक के कमरों में अपने बाप के सपनों को साकार
करने के लिए तैयारी करने वाले लड़के रहते हैं। एक लैपटाप,मोबाइल और किताबों के ढेर इन कमरों की विशेष समानों में जगह पाता है। इनमें ज्यादातर बिहार के खाये-कमाये घरों से आते हैं,कुछ तो बाप के स्टेट्स को बनाए रखने के लिए यहां आ टपकते हैं- तैयारी करने।
 उनमें कुछ बस तैयारी कर रहे होते हैं और साइड से 
पीवीआर,मैक डी में लड़कियों के साथ घूम रहे होते हैं। बाद में इनमें से ज्यादातर डोनेशन वाले कॉलेजों से एमबीए की राह लेते हैं। लेकिन कुछ केवल तैयारी कर रहे होते हैं। ये न तो 
साइड से कुछ करते हैं न सामने से। इनके उंगलियों में जली हुई सिगरेट होती है और दूसरे हाथ में क्रॉनिकल
,प्रतियोगिता दर्पण जैसी पत्रिका जगह पाती है।
 इनकी खास पहचान होती है 54दिनों से न धूली जिंस और बारह दिनों से न नहाया शरीर। इन्हें अपने कोचिंग,
चाय दुकान और कमरे को छोड़कर कोई और पता याद नहीं रहता। योजना, कुरूक्षेत्र और इंडिया का मैप 
इन्हें रात में भी सपने में आकर परेशान करता रहता है। हमेशा बिहार के ही कोई फलाने भईया यूपीएससी में टॉप
करके इन्हें प्रेरित करते रहते हैं।
इन्हें न तो लड़कियों में कोई इंटरेस्ट होता है और न लड़कियों को इनमें। हां,हर रिजल्ट के बाद दारू की बोतल
जरूर खुलती है- अपने कम्पिट न होने के गम से ज्यादा दुसरे के कम्पिट जाने के गम में। रिजल्ट के साथ ही इनके सिगरेट की संख्या भी बढ़ती चली जाती है।

हां। ये कभी-कभी नगली डेरी टाइप वाले बिहार में भी चले जाते हैं किसी गांव वाले से मिलने लेकिन लौटते वक्त ''हाउ डर्टी'' वाले फिलिंग के साथ।

  
(लेख का रफ ड्राफ्ट है-आगे आपके फीडबैक पर ठोक-बजा कर लिखा जाएगा)

2 comments:

  1. sundar hai... ab thok baja kar likhiye...

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  2. लिख ही डालिए आगे भी

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