Tuesday, December 25, 2012

गुस्सा का बंटनाः दिल्ली बनाम सहरसा

दृश्य 1- दिल्ली में एक लड़की के साथ गैंग रेप होता है. रेप के बाद बड़ी निर्दयता के साथ उस लड़की को जख्मी कर सड़क पर फेंक भी दिया जाता है..घंटों सड़क पर नंग्न पड़ी उसी लड़की और उसके दोस्त को कोई उठाने वाला नहीं दिल्ली की सड़कों पर नहीं है।

दृश्य 2- सहरसा में देर शाम एक आठ साल की बच्ची का बलात्कार होता है और सुबह उसके मां-बाप को उसकी लाश मिलती है।

दोनों ही मामले में बस दिल्ली और सहरसा की दूरी का फर्क है..दरिंदगी..बराबर
लेकिन दिल्ली वाले मामले में घटना के सुबह टीवी में खबर आने लगती है..सहरसा वाले मामले में कहीं कोई चर्चा नहीं..

फिर जेएनयू के छात्र मुनिरका में सड़क जाम कर घटना में तुरंत कार्रवायी की मांग करते हैं..मीडिया में घटना का महाकवरेज शुरु होता है....सालों से लगातार रेप..छेड़खानी झेल रही लड़की..बाप..भाई सड़कों पर उतरने लगते हैं..कुछ माहौल फेसबुक, ट्विटर बनाता है।

दिल्ली में हुए गैंग रेप के विरोध में अचानक ही पूरे देश में विरोध-प्रदर्शन शुरु हो जाते हैं और इस विरोध प्रदर्शन की आलोचना भी..
इस प्रदर्शन में दिल्ली के मीडिल क्लास के लोग शामिल हुए..ज्यादातर वही जनलोकपाल के लिए शनिवार-रविवारी क्रांति करने वाले लोग..
दिल्ली जैसे इलिट जगह की ये इलिट विरोध में पूरा देश शामिल हो रहा है..इन प्रदर्शनों में ज्यादातर लोग फोटो खिंचाने आने वाले...नेशनल मीडिया में अपना चेहरा दिखाने वाले लोग ही शामिल हैं..एक रिपोर्टर घटना बताते हैं कि एक सरदार जी पोस्टर लिये कैमरे के सामने चिल्लाते दिखते हैं और कैमरा ऑफ होते ही पोस्टर किनारा करते हुए अपने रास्ते हो लेते हैं..
जहां एक ओर सहरसा में हुए घटना कि किसी को जानकारी तक नहीं है वहीं दूर दिल्ली वाली घटना के खिलाफ मीडिया में छपने के लिए पटना में भी संगठन सड़क पर उतरने लगे..
इस गुस्साई भीड़ में कोई राजनीतिक समझ नहीं है..वे लोग फांसी की मांग कर रहे हैं तो कुछ लोग आरोपी को सरेआम हत्या करने और उनकी लिंग काटने की बात कर रहे हैं..
इस भीड़ को दक्षिणपंथी और भाजपा समर्थित लोग चला रहे हैं..इसे आंदोलन का रुप दिया जा रहा है..इस मुद्दे को राजनीतिक रंग में रंगा जा रहा है..

लेकिन दूसरी तरफ कुछ और भी है जो कहना जरुरी है..
ठीक है कि ये मीडिल क्लास का विरोध है..गुस्सा है..वही मीडिल क्लास जिसके लिए अच्छी सरकार का मतलब सिर्फ पेट्रोल..गैस..और डीजल के दाम न बढा़ने वाली नीतियां हैं..जो मंहगाई होने पर सरकार को कोसने लग जाते हैं, जिनके लिए जनसरोकार का कोई मतलब नहीं..लेकिन फिर भी ये वहीं लोग हैं कि जिनकी आलोचना- खाए..पीए और अघाए लोग कहकर की जाती रही है...
इन प्रदर्शनों ने इतना तो साफ संकेत दे दिया है लोगों का गुस्सा अब सड़क पर दिखने लगा है...सरकारे अब कोई भी कदम उठाने से पहले जानती है कि ये जनता अब सिर्फ डायनिंग हॉल में बैठकर कोसती नहीं है बल्कि सड़क पर उतर कर लड़ती भी है..

इस गुस्साई भीड़ को कुछ लोग लोकतंत्र के लिए नुकसानदेह बता रहे हैं..उनके लिए लोकतंत्र अच्छा बना रहता है जब इस देश की ज्यादाततर आबादी गरीबी रेखा से नीचे गुजरृबसर करने के लिए मजबूर हैं...उनके लिए ये संसद भी पवित्र चीज है जो इतने सालों से महिलाओं को आरक्षण संबंधी बिल पास नहीं करवा पाती है..

कुछ लोग इस प्रदर्शन के आंदोलन रुप लेने पर नाराज हैं..तो कुछ लोग इसके भगवा करण होते जाने पर..जब तक इस आंदोलन को राजनीतिक आकार नहीं दिया जाएगा..ये गुस्साई भीड़ फांसी और लिंग काटने की मांग करती रहेगी.और अगर इस भीड़ को प्रगतिशील अपने हाथों नेतृत्व करने के लिए..इस भीड़ में शामिल न होने के लिए नहीं आगे आते हैं तब तक इसके भगवाकरण होते जाने का खतरा बना रहेगा..

ठीक है इसमें सहरसा वाला मामला कहीं नहीं हैं..लेकिन किसी ने फेसबुक पर ही लिखा है अगर दिल्ली वाले दिल्ली की बात कर रहे हैं तो पटना वालों को पटना..भोपाल वालों को भोपाल की बात करनी ही होगी..पटना में कुछ संगठनों ने ऐसा विरोध प्रदर्शन कर अपनी बात को जाहिर भी किया..
क्रमशः

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