Friday, December 21, 2012

Diary of a Delhi girl by sushil jha

दिल्ली में हुए गैंगरेप पर बहुत लिखा जा चुका है और बहुत लिखना बांकि होगा..लेकिन हमेशा बेबाकी से अपने आसपास के बेतुकेपन पर लिखने वाले पत्रकार सुशील झा ने लगातार फेसबुक पर इस रेप और दिल्ली के रेप कैरेक्टर पर लिखा वो भीड़ से अलग तो है ही। साथ ही, उन लोगों के लिए भी एक सबक है जो ज्ञान तो लंबी-लंबी दे लेते हैं लेकिन जब चीजों को बेबाकी और अख्ड़पन से लोगों के सामने रखने की बात होती है तो कन्नी काटते नजर आते हैं..ये एफबी अपडेट गंभीरता का चोला नहीं पहने हैं..बल्कि आपको भीतर से मारते हैं..हर शब्द पढ़ने के बाद अजीब सा कसक पैदा करता है..इसको पढ़ने के बाद आप सोचने के लिए मजबूर नहीं होते क्योंकि इसके बाद दिमाग सोचने लायक नहीं रह पाता..झन्ना उठता है..शायद गिरेबां में झांकने को मजबूर करे सो अलग बात है..
मैंने इन स्टेट्स अपडेट को सहेज कर रखने का प्रयास किया है ताकि कुछ चीजें फेसबुक की भीड़ में खो न जाए..



मेरा स्कूल दिल्ली में नेहरु प्लेस के पास ही है. वहीं एक फ्लाईओवर भी है. फुटपॉथ की तरफ थोड़ा सूना और छाया वाली जगह है...जहां लिखा हुआ होता है..गधे के पूत यहां मत मूत....लेकिन फिर भी गधे मूतते हैं...मैं और मेरी दोस्त 11-12 साल के होंगे...हमने गधों की तरफ देखा भी नहीं था लेकिन अचानक लगा कोई इशारा कर रहा है. नज़र घुमाई तो देखे एक चालीस साल का गधा अपने गधेपन की निशानी निकाल कर हमें दिखा रहा था. आगे बढ़ गए..समझ भी नहीं पाए कि आखिर हुआ क्या..ये तो छिपाने की चीज़ होती है घर में. (Diary of a Delhi girl Part I)


मेरा स्कूल दिल्ली में नेहरु प्लेस के पास ही है. वहीं एक फ्लाईओवर भी है. फुटपॉथ की तरफ थोड़ा सूना और छाया वाली जगह है...जहां लिखा हुआ होता है..गधे के पूत यहां मत मूत....लेकिन फिर भी गधे मूतते हैं...मैं और मेरी दोस्त 11-12 साल के होंगे...हमने गधों की तरफ देखा भी नहीं था लेकिन अचानक लगा कोई इशारा कर रहा है. नज़र घुमाई तो देखे एक चालीस साल का गधा अपने गधेपन की निशानी निकाल कर हमें दिखा रहा था. आगे बढ़ गए..समझ भी नहीं पाए कि आखिर हुआ क्या..ये तो छिपाने की चीज़ होती है घर में. (Diary of a Delhi girl Part I)


स्कूल से आने वाली ब्लूलाइन बसों में भीड़ तो होती ही है. दसवीं में थे और स्कर्ट पहनते थे. कई बार होता था. पीछे से कुछ चुभने जैसा महसूस होता था..समझ में आ जाता था कि कुछ गड़बड़ है. कभी चिल्लाए..कभी किनारे हो लिए..कभी सीट मिलती साइड वाली तो अधेड़ से लेकर युवक तक लड़कियों के कंधे से कुछ सटाने की कोशिश में दिख जाते......पता नहीं मुझे ही ऐसा लगता है या सारी अंजलि, अनामिका और अनुष्का- सबको ऐसा लगता है... (Diary of a Delhi Girl Part 3)

धौला कुआं...के पास बड़े कॉलेज हैं..दोपहरी में हम चार दोस्त आ रहे थे. मेरी बस एक लेन में आती थी. बाकी दोस्तों को छोड़कर उधर बढ़ गई..पीछे से एक कार आकर रुकी और लगा कि वो कुछ पूछ रहे हैं. मैंने रुक कर पूछा तो देखा..खिड़की के पास बैठा लड़का अपनी नामर्दगी पैंट से निकाल कर कह रहा था...do you want a free ride…..मैं ज़ोर से भागी और दोस्तों के पास आ गई थी.....मैं दिल्ली में रहती हूं. (Diary of a Delhi Girl-part 4)


जेएनयू से वसंत कुंज बहुत दूर नहीं है. बारिश हो रही थी और पापा को आने में देर हो गई थी. भीग गई थी. बस स्टैंड पर कई लोग थे..बड़ी सी कार रुकी एकदम पास.मैं तुरंत पीछे हट गई..शीशा खुला और ऐसे नज़रें डाली गई कि मानो मैं वेश्या हूं और कार का ही इंतज़ार कर रही हूं..पापा पंद्रह मिनट लेट हुए होंगे और मैं इतनी देर में पंद्रह सौ बार मरी....दिल्ली की सड़कों पर हम हर रोज़ मरते हैं....बस ये दिखता कभी कभी है. (Diary of a Delhi Girl- Part 5 and Final)


आखिरी किस्त में बस इतना जोड़ूंगा कि ये दिल्ली में पिछले दस वर्षों से रह रही एक लड़की ने मुझे बताया था....नाम लिखना उचित नहीं लगा इसलिए उसका नाम नहीं लिखा...जो घटनाएं हैं..उनमें से कुछ तो मैंने खुद देखी हैं होते हुए...सबसे खतरनाक बात है कि छेड़ने वालों में 35 से ऊपर की उम्र वाले अधेड़ लोग अधिक होते हैं.....45 से ऊपर का कोई आदमी हो तो लड़कियां उन्हें और शक की निगाह से देखती हैं.    

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बेकाबू

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