Tuesday, July 30, 2013

पांच रुपये का नोटः टुकड़े यादों के


टहलते-टहलते कस्बा चला गया। रविश ने एक पोस्ट डाला है वहां- पनटकिया नाम से। पनटकिया शब्द दिखते ही रिवाइंड मोड में चला गया हूं। गांव में उस समय मोबाईल छप्पर पर स्पेशल मोबाईल एंटिना लगाने के बाद ही काम करते थे। बीएसएनएल का लैंड लाइन सेवा गांवों तक पहुंची ही थी। गांवों में थोड़े पढ़ लिख गए बीए पास भैया लोग बेकारी के दौर से गुजरते हुए मुजफ्फरपुर-पटना से कोर्स खत्म कर लौट गए थे अपने-अपने घर। रेलवे ड्राईवर से लेकर सिपाही की भर्ती परीक्षा तक मामला नहीं जम पाया था। ठीक इसी समय दिल्ली-बंबई-कलकत्ता गए गांव के चाचा-मोसा-मामा टाइप लोग मोबाईल खरीद चुके थे अपने-अपने शहर में। तभी गांव वाले भैया लोग को एसटीडी बूथ के बिजनेस का संजीवनी मिल पाया था। फोन करने के पैसे तो लगते ही थे....साथ ही, फोन सुनाने के अलग से।

दिल्ली-बंबई-कलकत्ता से चाचा-मामा फोन करते। फिर दूरी के हिसाब से आधे से एक घंटे का समय देना होता। इस बीच एसटीडी बूथ वाला  साईकिल खरखराते हुए जल्दी से पहुंचता- फोन की खबर सुन चाची-मामी टाइप लोग जल्दी से तैयारी शुरू करती। साड़ी बदलना-स्नो पाउडर लगाना और सज-धज कर एसटीडी बूथ पर। कई बार तो दिन में तीन-तीन चक्कर लगाने पड़ते। हर बार एसटीडी वाले को पांच रुपये देना होता।  गांव में भी एसटीडी बूथ वाले भैया हर दस मिनट पर साईकिल दौड़ाते नजर आते। दोस्त-यार उन्हें देखते ही पीछे से आवाज मारते-पनटकिया कहां चले...एसटीडी बूथ वालों का नाम ही पनटकिया हो गया था।

कांग्रेस वाले रसीद साब ने पांच रुपये की औकात गलत नहीं आंकी है। इस पांच रुपये के पास लोगों के नाम तक बदल देने की हैसियत रही है फिर ये भरपेट खाना क्या बला है।
रसीद साब को पांच रुपये का औकात पता है। रसीद साब को पनटकिया बयान के बाद बहुत गाली खानी पड़ी। मन करता है फेसबुक पर उनके समर्थन में एक एलान दे मारुं- कि हां, पांच रुपये का औकात है। एक बार इस अदने से आदमी ने भी पांच रुपये की औकात नहीं समझी थी। आजतक उस पनटकिया नोट को याद कर अफसोस करता रहता हूं।

नब्बे के दशक का अंतिम साल रहा होगा शायद-एक जनवरी का दिन। मोहल्ले में मछली बेचने वाला आया था। साल का पहला दिन, मछली और बच्चा मन। दौड़ कर घर को बुला लाया था। घर के पास पैसे नहीं । घर ने  बहुत समझाया-बुझाया लेकिन बच्चा मन मानने को तैयार नहीं। घर के आंचल में शायद बंधा था पांच का नोट। मुड़ा-सा वो पांच का नोट बहुत बेमनी-आशा से घर ने मेरे हाथ में रख दिए थे। लेकिन बच्चा मन जिद्दी था बहुत। नोट के कितने टुकड़े किए आज याद भी नहीं। घर आँसूओं से भींगा होगा जरुर- याद नहीं। आज भी लगता है उस पांच के नोट का हर टुकड़ा कही दिल के एकदम भीतर वाले कोने में गिरा पड़ा है। उन टुकड़ों से लग आज भी आँख का कोना भींग जाता है।

इसलिए राशीद साब को गंभीरता से लीजिए- पांच रुपये के नोट को भी। वैसे इस पांच रुपये को लेकर जो हल्ला कर रहे लोग हैं, उनमें ज्यादातर के लिए पांच सौ रुपये के नोट भी पांच रुपये के नाप का ही आता हो शायद।

फिलहाल पनटकिया गाने का लिंक दे रहा हूं- सुनिये


1 comment:

  1. कल 04/08/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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