Monday, July 29, 2013

अलहदा-सा कार्टूनिस्ट-कम-इंसान

अपने पवन भैया
 
 " ऑफिस में हमें सिटी रिपोर्टिंग में बैठाया गया था, वहीं उनकी सीट भी थी। आज ये मानता हूं कि उनसे दुआ-सलाम, नमस्ते-प्रणाम से आगे बैठ कर बात करने की हिम्मत नहीं हुई। वजह, साफ था- बचपन के उस कोने से ही उनके लिए मन में एक छवि थी। मैं उस छवि को तोड़ना नहीं चाहता था। कुछ छवियां बड़ी होती हैं- जिसे दूर से निहारते प्रशंसक की तरह ही देखने में सुख है। फोटो भी एक खिंची है हमारी साथ में। एक बार विभुराज भैया आए थे उनसे मिलने मेरे ऑफिस। बड़ा प्राउड फील हुआ था जब ऑफिस के कैन्टीन में दोनों को मिलवाया था- एक प्रशंसक को इससे बड़ा सुख और क्या चाहिए। अपन तो इतनी अवकात वाला भी नहीं कि उनके बारे में कुछ लिख सके "
हिन्दूस्तान अखबार कबसे पढ़ना शुरु किया है कुछ याद नहीं। और कब से उसके पहले पन्ने से लेकर संपादकी के बगल वाले पन्ने के कोने तक बनाए गए कार्टून को देख-देख हंसना और समझना शुरू किया है ये भी याद नहीं।

उस कार्टून बनाने वाले को पहली बार डीडी न्यूज के इंटरव्यू में देखे थे। वहीं से पता चला कि तेरह साल की उमर में घर से भाग दिल्ली पहुंच गया था वो आदमी- जिद्द कार्टून बनाने की, कि कैसे बिना किसी गॉडफादर के दिल्ली में उस उमर में घूमते रहे- सड़कों पर रात गुजारी-लेकिन कार्टून बनाने की जिद्द ज्यों का त्यों।

कहीं से शायद फॉर्मल ट्रेनिंग जैसा लिया हो पता नहीं लेकिन कार्टून अमरीका के किसी विश्वविद्यालय के सिलेबस में भी मिल जाएगा आपको।

बिहार का शायद ही कोई दरवाजा हो जहां उनके कार्टून को पढ़ कर लोग हंसे न हो-गुदगुदाए न हों या कि तारीफ में दो शब्द कहा न हो।
 
आईआईएमसी के दौरान मैं भी उनके फेसबुक फ्रेंड लिस्ट में टपकने में कामयाब रहा। एक बार डरते-डरते हैला किया था...तुरंत रिप्लाई में हैलो।
उनको बताया अब आपके साथ काम करने का मौका मिलेगा-हिन्दुस्तान में। कुछ बातचीत हुई लगा नहीं कि किसी से पहली बार बात हो रही है-एकदम सहजता।
 
हिन्दुस्तान के ऑफिस में पहली बार जिनको चेहरे से पहचान पाया था वही थे। जाकर हैलो किया। नादान माफिक ये भी बोल आया- आपसे फेसबुक पर बात हुई थी (जबकि उनके फ्रेंड लिस्ट से जियादा उनके फॉलोअर्स हैं-हजारों-हजार लाइक्स में एक लाइक अविनाश कुमार चंचल का भी)।
लेकिन लगा जैसे वही सहजता फिर फेसबुक के चैट बॉक्स से उतर सामने टपक रही हो।
एक मात्र पवन भैया के साथ वाली फोटु

 
ऑफिस में हमें सिटी रिपोर्टिंग में बैठाया गया था, वहीं उनकी सीट भी थी। आज ये मानता हूं कि उनसे दुआ-सलाम,नमस्ते-प्रणाम से आगे बैठ कर बात करने की हिम्मत नहीं हुई। वजह, साफ था- बचपन के उस कोने से ही उनके लिए मन में एक छवि थी। मैं उस छवि को तोड़ना नहीं चाहता था। कुछ छवियां बड़ी होती हैं- जिसे दूर से निहारते प्रशंसक की तरह ही देखने में सुख है। फोटो भी एक खिंची है हमारी साथ में। एक बार विभुराज भैया आए थे उनसे मिलने मेरे ऑफिस। बड़ा प्राउड फील हुआ था जब ऑफिस के कैन्टीन में दोनों को मिलवाया था- एक प्रशंसक को इससे बड़ा सुख और क्या चाहिए। अपन तो इतनी अवकात वाला भी नहीं कि उनके बारे में कुछ लिख सके।
 
उनके कार्टून रोज आँखों से गुजरते हैं- अक्सर पूरा पेज खोलकर उनके बनाए कार्टून देखता रहता हूं।
आज बहुत दिनों के बाद उनसे फेसबुक पर ही बात हुई। लगा ही नहीं कि अरसे बाद बात हो रही है। फिर वही सहजता, वही सौन्दर्य। लगा कोई छोटे भाई से हालचाल ले रहा है। कैसे हो, कैसा चल रहा है से लेकर मिलने तक की बातें। एक जिंदा समय में ही मिथक बन चुके हस्ती का इतना पूछ भर लेना- की कीमत यहां घिसिर-पिटर करके नहीं आंक सकता- शब्दों में।
आज जब थोड़ी-सी लोकप्रियता, थोड़ा-सा बढ़ा हुआ लाइक आपको सेलिब्रेटी-सा व्यवहार करवाने में सफल हो जाता है, ठीक उसी समय में पटना के एक अखबार में चुपचाप अपना कार्टून बना रहे इस कार्टूनिस्ट की सहजता की ऊंचाई का ग्राफ भी  फेसबुक और लाखों अखबारी पाठकों के तारीफ के साथ ही उपर बढ़ता चला जाता है।
उनका नाम लेने की जरुरत नहीं लेकिन फिर भी उन्हें यहां मेंशन किए देता हूं
- Pawan Toon
  उनका कार्टून यहां भी देंखे-पवन कार्टून

3 comments:

  1. पवन जी के कार्टून जो भी देखेगा वही उनका दीवाना हो जाएगा।
    उनके बारे मे आपके ब्लॉग पर पढ़ कर बेहद अच्छा लगा।
    आप बहुत खुश नसीब हैं कि उनके साथ उन्हीं के ऑफिस मे हैं। हम तो उनकी फेसबुक फ्रेंड लिस्ट मे खुद को देख कर ही अपना सौभाग्य मानता हूँ।


    सादर

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  2. Mujhe hamesh pawan ji k cartoon ka intejar rahta hai, aur unke cartoon ko dekh accha bhi lagta hai k kaise ek cartoon k jariye bahut sari baate kah jate hain, meri subhkamnayen unke sath hain aise hi wo nirantar pragti k or badhte rahen.......best of luck

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  3. पवन बिहार की पहचान बन चुके हैं.

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