Monday, December 23, 2013

कार्टून को अभिजात्यपन से नीचे घसीटते पवन

बच्चों के बीच पवन


रविवार को पवन जेएनयू में थे। जेएनयू के कंस्ट्रक्शन वर्कर के बच्चों को कार्टून सीखाते मिले। 13 साल की उम्र में कार्टून बनाने के लिए घर से भागने वाले पवन को कार्टून बनाना और बच्चों को कार्टून सीखाना- दो ही काम सबसे ज्यादा पसंद है।
       1997 में जब उन्होंने कई अखबारों के लिए कार्टून बनाना शुरू किया तो अपने कम सैलरी के बावजूद कुछ पैसे बचाकर पेंसिल-कागज और एक चटाई को मोटरसाईकिल पर बांधे निकल जाते। कहीं पटना और आसपास के किसी भी जिले में। कहीं भी चटाई बिछ जाती, बच्चों को बुला कार्टून बनाना सीखाने लगते। @pen & pencil program के नाम से कभी किसी मेले में चाय और अमरुद बेचने वाले को कार्टून सीखाते कभी विकलांग बच्चों के बीच बैठे कार्टून सीखाते पवन ने कार्टून जैसी विद्या को पॉपुलर बनाने का काम किया है।
     एक तरफ कार्टून को उसके इलिटनेस से नीचे लाकर आम लोगों में लोकप्रिय बनाना और दूसरी तरफ इस कला को सुविधाविहिन बच्चों औऱ हाथों तक पहुंचाना- दोनों ही स्तर पर पवन लगातार काम कर रहे हैं।
     कार्टून और पेंटिंग में कई बड़े नाम हुए हैं लेकिन वहां आमलोक का अभाव हमेशा से दिखा है। इसलिए जब हुसैन अपनी आत्मकथा में बताते हैं कि कैसे उन्होंने अपने पुराने स्कूल के बच्चों में अपनी पेंटिंग यूं ही बांट दी तो प्रभावित होता हूं।
     pen & pencil program के सफर में कई अच्छे अनुभव भी हैं पवन के पास। एक बार बिहटा में चार सौ बच्चों को कार्टून बनाना सीखाया, उनमें दस बच्चों के काम को सेलेक्ट कर पहुंच गए बिहार सरकार के किसी विभाग के पास। बाद में सरकार के कई विभाग ने उन बच्चों के काम को ग्रीटिंग कार्ड के रुप में प्रकाशित किया। बाद में बकायदा एक समारोह आयोजित कर बच्चों को पैसे दिये गए और उन्हें सम्मानित भी किया गया। इनमें कई बच्चे ऐसे थे जो तीसेक किलोमीटर दूर होने के बावजूद पटना नहीं आए थे कभी।
     पवन की संवेदनाएँ ही हैं जो कार्टून सीखने वाले बच्चों के लिए किसी मंत्री के पैसे से रसगुल्ले खरीदने के मिठास को फील कर सकती हैं। संवेदनशील होना किसी भी कलाकार की शायद पहली शर्त हो लेकिन उस संवेदनशीलता को कागज-कलम-पेंटिग-कार्टून से बाहर भी फील करना ज्यादा महत्वपूर्ण है। पवन यही कर रहे हैं।

एक उम्मीद

3 comments:

  1. रुला के ही मनोगे क्या ... पगले !! भाई है हमारे पवन एक्सप्रेस

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  2. वाह !! बहुत खूब.....

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