Friday, May 16, 2014

तु जिन्दा है तो जिन्दगी की जीत पर यकीन कर




कल जब मोदी के जीत की खबर चैनलों पर दहाड़ मार रही थी, हम महान संघर्ष समिति के एक बैठक में सुहिरा गांव में थे। एक दोस्त ने मोबाइल इंटरनेट पर देखकर बताया कि मोदी तीन सौ से ज्यादा सीटों पर लीड कर रहा है।

लीडिंग के इस खबर को सुनकर हरदयाल सिंह गोंड मेरे पास आकर धीरे से पूछता है- अब जंगल कट जाएगा न ?

हरदयाल एक आदिवासी है। यही कोई 22-24 साल का लड़का। वो पिछले तीन साल से अपने जंगल को बचाने के लिए एस्सार के प्रस्तावित कोयला खदान के खिलाफ आंदोलन कर रहा है। वो समझता है कि मोदी की जीत के उसके लिये क्या मायने हैं, वो जानता है कि एस्सार-अंबानी के मोदी के साथ क्या रिश्ते हैं।

इसलिए उसकी आवाज में निराशा है, बेउम्मीदपन है। मोदी की जीत हाशिये पर खड़े आदिवासियों-दलितों-मुस्लिमों के लिए अच्छा संदेश तो नहीं है। भले मोदी समर्थक दावा करें कि इन तबकों का भी उन्हें समर्थन मिला है।

आदिवासियों से उनका जंगल पहले भी छीना जाता रहा है लेकिन अब इसकी रफ्तार अपनी निर्ममता को छुएगी, जिस ब्राह्मणवादी आरएसएस की पॉलिटिक्स के सबसे बड़े नेता के बतौर मोदी उभरे हैं, वो दलितों को पीछे ले जाने वाली साबित हो सकती है। इन चुनावों में जिस तरह से समाज में धर्म के आधार पर धुव्रीकरण हुआ है वो अल्पसंख्यकों और अमन पसंद लोगों के लिए शुभ संकेत नहीं देता। एक दक्षिणपंथी, रुढ़िवादी समाज और सरकार में पिछड़ों-महिलाओं-अल्पसंख्यकों और कमजोर वर्ग के लोगों के साथ किस तरह का बर्ताव किया जाता है ये हम पूरी दुनिया के फासिस्ट सरकारों के शासनकाल में देख चुके हैं।


हम सबके लिए ये आलोचनात्मक होने का समय है- खुद के लिए। कहां चुक हुई? कहां पीछे रह गए हम? गंगा-जमुना तहजीब वाले अपने इस देश को बचाने में क्या चुक हुई हमसे? क्या सच में हम अपने लिए एक नयी जनता के आने का इंतजार कर रहे हैं?

लेकिन इन सबके बावजूद एक उम्मीद है। उसी उम्मीद की वजह से मैं हरदयाल को उसके तीन सालों के संघर्ष को, मेहनत को, प्रतिबद्धता को याद दिलाता हूं।
उम्मीद इसलिए भी कि इस चुनाव में जिस तरह से फेसबुक-ट्विटर से लेकर समाजिक मंचों तक पर देश के अमनपसंद तबका ने मोदी विरोध के झंडे को थामा है वो सराहनीय है।

मोदी का जो लहर करोड़ों-अरबों खर्च करके दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित पीआर एजेंसी एपको ने संभाल रखी थी, उसके खिलाफ सोशल मीडिया पर अपने खर्चे से लगातार आवाज बुलंद करके साथियों ने बताया है कि भले मौसम उदास हो, हम सब उदास मौसम के बारे में भी गीत गायेंगे।

आप करने को आलोचना कर सकते हैं, आप करने को फेसबुक पर गाइडलाइन जारी कर सकते हैं, आप हमारी आलोचना की आलोचना कर सकते हैं, लेकिन उसे इग्नोर नहीं कर सकते। लगातार मोदी के खिलाफ, फासिस्ट ताकतो के खिलाफ आवाज उठाकर साथियों ने अपनी भूमिका अदा की है और आगे भी करते रहेंगे।

इस बीच चुनौती बढ़ी है। कल रात देर तक हम सभी साथी गीत गाते रहे-
तु जिन्दा है तो जिन्दगी की जीत पर यकीन कर
गर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर
तु जिन्दा ......
ये गम के और चार दिन, सितम के और चार दिन
ये दिन भी जायेंगे गुजर, गुजर गए हजार दिन...
तु जिन्दा है...

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