Monday, May 26, 2014

एक आदमी बनना भूल गये हैं.......

एनडीटीवी पर चली एक खबर का स्क्रीन शॉट सोशल साइट पर खूब शेयर हो रहा है। उसमें मोदी के गांधी की समाधि पर फूल चढ़ाने जाने की खबर है। बस गलती इतनी है कि गाँधी की जगह मोदी टाइप हो गया है और खबर बन गयी है- मोदी की समाधि पर नरेन्द्र मोदी।

इस स्क्रीन शॉट को लेकर लगातार लोग मीडिया को गरिया रहे हैं। कोई मोदी के मीडिया के साथ संबंधों की ले रहा है तो कोई चूंकि एनडीटीवी है तो उसकी ले रहा है।

और इन सारे बहसों, चुटकुलों, मजाकों के बीच सबसे ज्यादा जिस आदमी के पीड़ित होने का खतरा है वो है इस कार्यक्रम के टिकर पर बैठकर लिखने वाला आदमी। टिकर या फिर हेडलाइन जो भी हो। फेसबुक पर चले इस अभियान की आखरी सफलता क्या होगी- चैनल इसके लिए माफी मांग लेगा बस।

लेकिन सोचिये जरा, इस तरह की टाइपिंग मिस्टेक करने वाले उस टीवी कर्मचारी के साथ चैनल में बैठा बॉस क्या बिहेव कर रहा होगा, पूरे दफ्तर में आज उसके साथ लोग कैसा बिहेव कर रहे होंगे, हो सकता है एनडीटीवी में ज्यादा संवेदनशील लोग बैठे हों तो हल्की-फुल्की डांट लग जाये और बात रफा-दफा हो जाय लेकिन होने को यह भी हो सकता है कि उस कर्मचारी को नौकरी से ही निकाल दिया जाय।


लेकिन हमलोगों का क्या है?  हम लोग मोदी आलोचक हैं, हमलोग एक खास विचारधारा में लिपटे आदमी हैं, हम अपना काम कर रहे हैं, हमारी संवेदनशीलता लार्जर मास के साथ जुड़ी हुई है, उस एक अदने से टीवी कर्मचारी की नौकरी रहे या जाय हमें क्या मतलब।


वो जो बारह-चौदह घंटे बैठकर कभी टिकर, कभी ब्रेकिंग लिखता रहता है, हो सकता है अभी नया आया हो, पत्रकारिता के जज्बे से लैस। लेकिन उसे टीवी पर टिकर लिखने बैठा दिया गया हो, हो सकता है वो पांच साल से टीवी का टिकर ही लिख रहा हो, उसके भीतर का पत्रकार एक मशीन बन गया हो, उसके काम करने की परिस्थिति बद से बदतर हो, पत्रकारिता के पर्दे पर चमकता हुआ नाम बनने आया वो शख्स हो सकता है कि खुद को एक कम लागत में ज्यादा घंटे काम करने वाला स्किल मजदूर बनना स्वीकार कर लिया हो। लेकिन हमें क्या है। हम उसकी ये परिस्थितियां भला क्यों समझने लगे।


हमें तो आलोचना चाहिए, फेसबुक पर लाइक और ट्रेंड करवाने का ठेका चाहिए, हम तो वहीं करेंगे। मसाला है तो उसकी दुकानदारी जरुरी भी तो है न।

शायद उस टीवी कर्मचारी की ही गलती है, जिसने एक ऐसे काम को चुना जहां छोटी गलतियों के लिए भी स्पेस नहीं। कौन गलती नहीं करता, अपने हर रोज के दफ्तरी काम में, कौन है जो मिस्टर परफेक्टनिस्ट है अपने काम में। लेकिन उस टिकर टाइप करने वाले ने नहीं समझा कि उसका काम भले लोग नोटिस न करे, उसकी गलतियों को उछालने वाले लोग टीवी के बाहर अपना मोबाईल फोन लेकर बैठे हुए हैं।

मैं टीवी का आदमी नहीं हूं लेकिन फिर भी समझने की कोशिश कर रहा हूं। टीवी में लगातार दिन-रात मोदी-मोदी चलता रहता है। टीवी कर्मचारी रात-दिन मोदी-मोदी ही टाइप करता रहता है। पूरा टीवी मोदीमय हो गया है। ऐसे प्रेशर में काम करने वाले आदमी से गलती होना बेहद सामान्य सी बात है। जो टीवी के जानकार हैं समझते हैं इस प्रेशर को, इस गलती को। लेकिन अब काम ऐसा है कि छोटी सी गलती भी दिख जाती है। ठीक है कि हम उस गलती को पकड़ लिये, ठीक है कि हर चीज को अपलोड करने की हमारी आदत है, ठीक है कि इस अपलोड से हमको ज्यादा लाइक्स मिल जायेगा, ठीक है कि हमको मोदी और मीडिया की आलोचना करने का मौका मिल जायेगा।

 लेकिन इन सबके बीच क्या यह सच नहीं है कि हम सब असंवदनशील होते जा रहे लोग हैं जो विचारधारा और जनसरोकारी, बौद्धिक बनने की होड़ में एक आदमी बनना भूल गये हैं.......


3 comments:

  1. शुक्रिया, आप ही समझ पाए कि टिकर वाला भी इंसान ही होता है। गलती नहीं होनी चाहिए पर हो सकती है। इंसान हैं मशीन नहीं।

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  2. उमदा....
    मैं भी टिकर पर हूं,,समझता हूं,,,बड़ी गलती नहीं है,,बस नाम 'बड़ा' गलत टाइप हो गया है,,

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