Thursday, May 29, 2014

हनुमान बनने के समय में

हो सकता है आप इसे कहानी समझें, कोई इसे संस्मरण का नाम देने के लिए भी आजाद है लेकिन खुद इसे लिखने वाले ने इसे कमेंट्री का नाम दिया है। कमेंट्री समाज पर भी, राजनीति पर भी और हो सकता है इन सबसे बढ़कर हमारी मानवीय संवेदना पर। फेसबुक स्टेट्स के दौर में कुछ इस तरह का भी पढ़ा और लिखा जाना जरुरी है.....लिखा विनय सुल्तान ने है


घर से दूर दिल्ली में मेरे जैसे बेरोजगार युवक के पास शाम में करने के लिए कुछ ख़ास होता नहीं हैं। फिल्म सिटी के हर दफ्तर में में सीवी के साथ चक्कर काटने के बाद अक्सर शाम को मैं ऐसे किसी मेट्रो स्टेशन पर उतर जाता हूँ जहां पर भीड़-भाड़ हो।  मेरी बेरोजगारी ने मुझे लाजपत नगर, चांदनी चौक, चावड़ी बाजार, पहाड़ गंज सहित दिल्ली के तमाम बाजारों की सैर करवा दी। 

 इन सब में कनाट प्लेस मेरी पसंदीदा जगह है. यह कोई कहानी नहीं है और ना ही कोई संस्मरण. यह एक तरह की लिखित कमेंट्री है. जो दोस्त एक बढ़िया क्लाइमेक्स के इन्तेजार में हैं, उनके हाथ मायूसी लगने वाली है।

 तो इस लम्बी भूमिका के बाद घटना की तरफ बढ़ा जाए. शनिवार की शाम थी. मैं नोएडा के एक दफ्तर से मायूस लौट रहा था. मायूसी अपने उफान पर थी इस लिए वक़्त की हत्या करने के लिए(टाइम किलिंग) मैंने राजीव चौक का रुख किया. पिंड बलूची होते हुए मैं हनुमान मंदिर पहुंचा. पिंड बलूची मेरे लिए एक रहस्य है. फेंटेसी के भीतर की फेंटेसी. पता नहीं अन्दर से कैसा है पर जब भी ये नाम सुनता हूँ तो लाल कुरते और जलेबी मूंछो वाला दरबान सामने आ जाता है. हनुमान में मेरी कोई श्रद्धा ना होने के बावजूद मैं अक्सर सीपी के हनुमान मंदिर की तरफ बढ़ जाता हूँ. एक दोस्त ने गंगा ढाबे पर समोसा खाते हुए कहा था कि भारतीय बहुत होशियार होते हैं. आलू से पेट भर लेते हैं. इस उधार की होशियारी से उपजी चेतना और खाली पेट को भरने के लिए हनुमान मंदिर के बाहर लगी सब्जी कचौड़ी की दूकान सबसे मुफ़ीद जगह थी. 

मैं एक प्लेट सब्जी कचौड़ी खाने के बाद वहीँ किनारे बैठ जाता हूँ. ऊपर की जेब में पड़ी मुरझाई हुई सिगरेट निकाल कर उसे सुलगा लेता हूँ. शाम का वक़्त था. दुसरे पहर में बारिश का अहसास देने के नाम पर हुई बूंदा-बांदी के बाद हवाएं निर्मल वर्मा के उपन्यासों जैसी चल रही थी. एक बन्दर परिवार पीपल के पेड़ पर बैठा था. बंदरों के बच्चे खेल रहे थे. मुझे शक है कि बंदरों को पकड़ा-पकड़ी के अलावा कोई खेल शायद आता हो. मैंने अक्सर बन्दर के बच्चो को बिना वजह एक-दुसरे के पीछे भागते देखा है. खेल-खेल में एक बन्दर के बच्चे ने अपनी औकात से बढ़ कर छलांग लगा दी. उसकी गलती का अहसास उससे पहले उसकी मां को हो गया. उसके हाथ से टहनी छिटकने से पहले उसकी बांह उसकी मां के हाथ में थी. 

 रिवोली के ठीक सामने एक चार साला लड़का हनुमान बना खड़ा था. उसका परिवार ठीक उसके पीछे बैठा था. लोग बाल हनुमान के सामने निकल रहे थे. कुछ उसके हाथ में सिक्के थमा रहे थे. उसकी एक बहन थोड़ी दूर पर गुब्बारे बेच रही थी. इसी बीच एक सरदार जी अपनी महिला साथी के साथ रिवोली में सिनेमा देखने पहुंचे. सरदार जी का आर्थिक-सामाजिक विश्लेषण करने के लिए हम उदय प्रकाश से कुछ समय के लिए फैंटेसी उधार ले लेते हैं. सरदार जी दिल्ली के किसी पॉश इलाके के रहने वाले थे. जो महिला उनके साथ थी वो उनके शो रूम में काम करने वाली मुलाजिम हो सकती है. ये महज खालिस कल्पना हो सकती है. अगर यह झूठ साबित होती है तो पुलिसिया दस्तावेज का शब्द 'प्रथम दृष्टया' मेरे बचाव का सबसे बढ़ा हथियार है. 

तो हुआ यों कि सरदार जी अपनी महिला मित्र के सामने रुआब गांठने की गरज से पास की गुमटी से एक कोकाकोला की बोतल खरीद कर बाल हनुमान के हाथ में पकड़ा दिया. इस बीच वो अपनी मित्र से कुछ कह रहे थे जिसका लब्बोलुआब यह था कि भीख मांगने  वाले इस बाल हनुमान का बाप चोर और शराबी है. इस वजह से पैसा देने की जगह वो इसे कुछ खिला कर अपने पुण्य अकाउंट को मजबूत कर रहे हैं. लड़की सिर्फ गर्दन हिला रही थी. कोकाकोला की बोतल को खोल कर सरदार ने बाल हनुमान के मुंह में वो बोतल लगभग ठूंस दी. हनुमान ने उसमे से दो अपनी औकात से बड़े दो घूँट खींचे और मुड़ कर अपने परिवार की तरफ देखने लगा.

 उसकी एक गर्भवती बहन, दादी और एक दो साल की बहन की नजर कोकाकोला की बोतल पर टिकी हुई थी. सरदार के रिवोली में घुसते ही लड़का सड़क के किनारे बैठे अपने परिवार की तरफ भागा. उसने कोकाकोला की बोतल अपनी दादी के हाथ में थमाई और फिर से अपनी जगह आ कर खड़ा हो गया. इसी बीच भीख मांग रही उसकी मां एक ऐसे आदमी के पीछे भागने लगी जिसके हाथ में केलों से भरा एक थैला था. आदमी उसकी मां को अपनी जबान से लतिया रहा था. 'गंदी औरत मैं तुझे एक केला नहीं दूंगा.' उसने आधा दर्जन बार इस बात को इतनी उंची आवाज में कहा कि वहां मौजूद हर आदमी को पता लग गया कि बाल हनुमान की मां एक गंदी औरत है. इसके बाद वो रिवोली के पास वाली गली की तरफ मुड़ गया. मां भी पीछे-पीछे भाग रही थी. 

इसके बाद गली से हल्ले की आवाज आने लगी. हनुमान ने गदा छोड़ कर गली की तरफ दौड़ लगा दी. मेरे दिमाग ने बन्दर के बच्चे और उसकी मां का दृश्य एक बार फिर ताजा हो गया.

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