Thursday, May 29, 2014

घर को मनीऑर्डर

लगता है इस हफ्ते भी घर को पैसे नहीं भेजा पाउंगा। दो दिन बचे हैं और काम इत्ता। बिजी। पिछले दो महीने से घर पैसे नहीं भेज पा रहा। समझता हूं। घर इंतजार में होगा, माँ भी। हर महीने पैसे अकाउंट में भेजने की कोशिश करता हूं लेकिन इस बार काम थोड़ा ज्यादा है इसलिए।

याद है, जबतक कॉलेज में रहा-घर से हर महीने पांच तारीख तक पैसे अकाउंट में आते रहे। अगर कभी देर हो जाय तो कैसा फील होता था न। मकान किराया, अखबार बिल, किराना वाले का उधार और भी बहुत कुछ। जो हर महीने के एक तय तारीख को चुकाना जरुरी होता था।

लेकिन जब खुद की बारी आई है तो निश्चिंत पड़े हैं। काम का बहाना है, जहां रहता हूं वहां एक ही एसबीआई का ब्रांच है। भीड़ इतनी कि पूछो मत। इंटरनेट बैंकिंग अभी तक मेरे गांव वाले ब्रांच तक नहीं पहुंच पायी है।

मनीऑर्डर की सुविधा होगी शायद। कल सिंगरौली के एक गांव में रहूंगा तो पोस्ट ऑफिस जाकर एक बार पता ही कर लूंगा। मनीऑर्डर सेफ रहेगा ये कहना मुश्किल है। बचपन में कितनी बार अपने गांव के डाकिये को मार खाते, लोगों को उससे झगड़ा करते देखा है- शहरों से, नौकरी से लोग पैसा भेजते और वो उन पैसों की दारु पी जाता। बाद में बतौर कर्ज चुकाता रहता।

लेकिन मनीऑर्डर की खुशी। आह। जब भी घर में मनीऑर्डर आता पूरा घर खुशी के झूले पर। दिनभर डोलता रहता। जब मौसी के यहां कश्मीर के बोर्डर पर तैनात मौसा जी मनीऑर्डर भेजते थे। उनकी माँ कितनी खुश होती थी, डाकिये को टिप दी जाती, शाम को बाजार से मिठायी लाकर बांटी जाती। महीनों इंतजार होता। ज्यादा देर होने पर चिट्ठी लिखी जाती- बेटा, तबीयत खराब है, बहु को बच्चा होने वाला है, चापाकल बनवाना है, खेत में पानी पटाने का मौसम आ गया है, अबकी सोच रहे हैं बारिश में खप्परा ठीक करवा लें, होली में न सही छठ में तो सबके लिए साड़ी लेना ही होगा न। तो जितनी जल्दी हो सके पैसा मनीऑर्डर कर दो।

उधर से बेटे की चिट्ठी आती- इस बार मनीऑर्डर भेजने में देरी हो रही है। सरकार पैसा नहीं दे रही, छुट्टी का पैसा ज्यादा काट लिया है, इस महीने बिमार पड़ गए- डॉक्टर को दिखाना पड़ गया। जल्द ही पैसे भेजेंगे। छठ तक कोशिश करेंगे खुद आने की। तबतक सकुशल रहिये।

माँ परेशान होती। गाँव के साहुकारों से सैकड़ा पर ब्याज सहित कुछ पैसे उधार लिये जाते। घर के काम निपटाये जाते और मनीऑर्डर का इंतजार किया जाता।

एक दिन डाकिया आता। अंगूठा लगवा के मनीऑर्डर पकड़वा जाता। फिर सारे उधार चुकते किये जाते। घर के बाकी बचे काम पूरे किये जाते और दो-तीन दिन रुककर बेटे को मनीऑर्डर मिलने की सूचना भेजी जाती।

मेरा घर उतना खुशनसीब रहा नहीं कि कोई मनीऑर्डर भेजे। मेरे घर में भले मनीऑर्डर नहीं पहुंचा हो लेकिन वो आसपास रहने वालों के मनीऑर्डर का इंतजार और मिलने की खुशी में सहभागी रहा है। स्वाभाविक ही है मेरे घर को भी तो कभी लालसा हुई ही होगी न- काश, मेरे घर भी आता मनीऑर्डर।

हालांकि अब शायद ही आता हो मनीऑर्डर। तकनीक और बैंकिग की सुविधा ने उस लंबे इंतजार के बाद मिलने वाली खुशी को गायब कर दिया है। अच्छा है। अब जिन्दगी आसान है।

लेकिन फिर भी जाने क्यों मन हो रहा है - एक मनीऑर्डर घर भेजने का। शायद इसी बहाने मेरा घर भी मनीऑर्डर की खुशी को अपनी यादों में सहेज सके। शायद।



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