Friday, August 8, 2014

एक रक्षा बंधन ऐसा भीः जंगलवासियों का राखी महोत्सव

कहानी एक ऐसे गांव की जिसने अनूठे अंदाज में मनायी राखी महोत्सव

हर साल राखी का उत्सव आता है। तैयारियां होती हैं। इस साल भी राखी की तैयारियां पूरे देश में जोर-शोर से हो रही है लेकिन इन तैयारियों के बीच एक गांव ऐसा भी है जिसने रक्षा बंधन को बिल्कुल नयी परिभाषा देने की ठानी है।
मध्यप्रदेश के सिंगरौली जिले में स्थित गांव अमिलिया तथा उसके आस-पास के लगभग 15 से 20 गांव इस बार राखी जैसे खूबसूरत उत्सव को नया आयाम दे रहे हैं। इन गांवों के लोगों ने रक्षा बंधन  के दिन अपने जंगल में जाकर पेड़ों पर राखी बांधने का निर्णय लिया है।
दरअसल कुछ दशक पहले तक मध्यप्रदेश का सिंगरौली जिला अपने जंगलों के लिए प्रसिद्ध था। कहते हैं जब पुराने जमाने में राजा-महराजा को किसी को सजा देनी होती थी तो उसे सिंगरौली के जंगलों में भेज दिया जाता था। ये जंगल इतने घने होते थे कि यहां से फिर कोई दुबारा लौट नहीं पाता, लेकिन आज यह इलाका कोयला खदानों के लिए मशहूर हो गया है। जंगलों की जगह बड़े-बड़े कोयला खदानों ने ले लिये हैं और सिंगरौली को देश की ऊर्जा राजधानी कहा जाने लगा।
अमिलिया सहित आसपास के दूसरे गांवों के लोग पिछले कुछ साल तक खुद को खुशनसीब समझते थे क्योंकि सिंगरौली का बचा-खुचा जंगल अब उनके हिस्से में ही है। स्थानीय ग्रामीण जिनमें ज्यादातर आदिवासी और दलित समुदाय के लोग थे, इन्हीं जंगलों में जाकर अपनी जीविका चलाते हैं। जंगल से उन्हें महुआ, तेंदू, चार, चिंरौची, सूखी लकड़ी और यहां तक की जड़ी-बुटी भी मिलता है। लेकिन आज इस जंगल पर और लोगों की जीविका पर संकट मंडरा रहा है। महान नदी के नाम पर इस जंगल का नाम भी महान ही है, जिसे सरकार ने कोयल खदान के लिए आवंटित कर दिया है।
अब वहां जंगल की जगह कोयला और बड़े-बड़े पहाड़ की जगह खदान की खाई प्रस्तावित हुई है। लेकिन गांव के लोग अपने जंगल को खोना नहीं चाहते। वे बचाना चाहते हैं अपने जंगल को भी, पर्यावरण और इस दुनिया को भी। इसलिए उन्होंने अपना एक संगठन महान संघर्ष समिति बनाया है जो लगातार जंगल पर अपने हक की लड़ाई को ठाने हुए हैं। जंगल के प्रति अपने इसी प्यार और समर्पण को दिखाने के लिए गांव वालों ने इस रक्षा बंधन पेड़ों को राखी बांधकर जंगल को बचाने का संकल्प लेंगे और दुनिया को जंगल बचाओ, जीवन बचाओ का संदेश भी।
यह अनूठी पहल है। इसको समझाते हुए अमिलिया गांव के आदिवासी उजराज सिंह खैरवरा बताते हैं,  यह जंगल कभी हमारा बाप बनकर हमें पालता है तो कभी माँ बनकर दुलार भी करता है। आज हमलोग राखी के दिन इस जंगल से एक नया रिश्ता जोड़ रहे हैं। ये रिश्ता है- भाई-बहन का, आपसी विश्वास और समर्पण का। जैसे भाई-बहन आपस में राखी बांधकर एक-दूसरे की रक्षा का संकल्प लेते हैं, वैसे ही आज हम भी पेड़ों में राखी बांधकर इनकी रक्षा का संकल्प ले रहे हैं। लगभग 9 हजार राखियां हमने जुटाये हैं, इनमें एक राखी 54 फीट लंबी है, जिसे खदान परियोजना से प्रभावित होने वाले 54 गांवों का प्रतीक बनाया गया है

आदिवासियों और जंगलवासियों का जंगल से यह संबंध, यह समर्पण और यह अनूठा रिश्ता शहरों में रहने वाले लोगों के समझ में भले न आये, जो लगातार अपनी हरकतों से पर्यावरण को खत्म करने पर तुले हैं लेकिन आज भी देश के सुदूर इलाकों में ऐसे हजारों उदाहरण हैं, जहां प्रकृति और जीवन एक-दूसरे के दुश्मन नहीं बल्कि पारस्परिक साहचर्य के साथ जीवन बिता रहे हैं। उम्मीद है इस पारस्परिक जीवन और जंगल बचाने की उम्मीद को हम शहर वालों की नजर न लगे।

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