Monday, July 20, 2015

अब : अशोक वाजपेजी

मैं अब रहता हूं
निराशा के घर में
उदासी की गली में ।

मैं दुख की बस पर सवार होता हूं
मैं उतरता हूं मैट्रो से
हताशा के स्टेशन पर ।

मैं, बिना आशा, हर जगह
जाता हूँ
मैं कहीं नहीं पहुँचता ।

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