Thursday, October 29, 2015

भारत एक बिसरा देश



एक समय की बात है विकास के सफर पर एक देश सरपट भाग रहा था। उस देश का नाम था भारत। उस देश में मध्यवर्गीय युवाओं की खूब संख्या थी। ज्यादातर युवा जीवन भर बीच में ही झूलते रहते थे। वे बिना बैंक लोन लिये उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर सकते थे। क़र्ज़ लेकर अगर कोई छोटा मोटा प्रोफेशनल कोर्स कर भी लिया तो वे पेट भरने के अलावा और कुछ नहीं कर पाते।


न तो उनके बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ पाते, न वे अपनी माँ का अच्छा इलाज़ करवा पाते थे। क्योंकि उस देश की सरकार नहीं चाहती थी कि शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा मध्यवर्गीय युवाओं को मिले, इसलिए उसने सरकारी शिक्षा और स्वास्थ्य बजट में भारी कटौती शुरू कर दी थी। पूरे देश में प्राइवेट स्कूलों, प्राइवेट अस्पतालों को जाल बिछ चुका था। सरकारी स्कूलों और अस्पतालों को खत्म कर दिया गया था।

ऐेसे में मध्यवर्गीय युवा जीवन भर किसी कंपनी में कुछेक हज़ार रुपए की नौकरी करते हुए, बाजार से लोन-ईएमआई लेते हुए ही खप जाया करते थे।


उस जमाने के बचे लोग बताते हैं कि वह सरकार, वह व्यवस्था अपने आप में इतना क्रूर और अमानवीय थी जिसने अपने ही देश के लोगों को तिल तिल कर मारना शुरू कर दिया था और उस समय के लोग बिना उफ़्फ किये मरते जा रहे थे।


बीच-बीच में दंगा करवाने वाले, हिन्दु-मुस्लिम करने वाले ऐसे मुद्दे को उछालते रहते थे जिससे लोग अपनी असल समस्याओं पर ध्यान नहीं दे पाते थे। लोगों का जीवन असुरक्षित बना हुआ था और सरकार वोट बटोरने में व्यस्त थी।


और जो लोग इस व्यवस्था के खिलाफ बोलते थे उन्हें राष्ट्र विरोधी कहा जाता था, उनको कम्यूनिस्ट बताकर जेल में डाल दिया जाता, जबकि सच यह था कि शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे तमाम मुद्दों से एक घोर भक्त टाइप आदमी भी उतना ही परेशान था जितना कोई सामान्य आदमी।

यह स्थिति सिर्फ एक सामान्य मध्यवर्ग की थी, बाकी जो हज़ारों सालों से पीड़ित समाज था उनकी स्थिति तो इससे भी बदतर थी।


लेकिन उन दिनों अखबार-टीवी में बताया जाता था देश विकास कर रहा है..देश की जीडीपी फलाने देश से इतना आगे निकल गयी है। सामान्य लोग उस बढ़े हुए जीडीपी में अपना विकास नहीं देख पाते तो उन्हें धर्म की याद दिलायी जाती। ज्यादातर लोग भजन में लीन हो गए। जो बच गए वे भूख और जिन्दा रहने की लड़ाई में व्यस्त हो गए।


इस तरह दुनिया के नक्शे से एक खूबसूरत देश भारत खत्म होता गया और पैसे वाले व्यापारियों ने अपने लिये इंडिया नाम का नया देश गढ़ लिया।

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