Monday, February 29, 2016

मेरी आस्तिकता

मैं घोर आस्तिक आदमी हूँ। नास्तिक नहीं। लेकिन वो आस्तिकता कोई पत्थर या मूर्ति या अलौकिक के प्रति नहीं। मेरी आस्तिकता प्रेम। परिवार। प्रकृति की तरफ है। जब रोने का मन होता है तो किसी पेड़ के नीचे खड़े हो रोता हूँ। कभी उदास हुआ तो नदी के किनारे जाकर बैठ जाता हूँ। बहुत अकेलापन लगा तो घर पर लंबे फ़ोन कॉल्स करता हूँ।
पहाड़। जंगल। नदी। मिट्टी, और अपने लोगों ने कभी निराश नहीं होने दिया। ये हैं तो जीवन नीरस होने से बच जाता है। प्रेम है जो तमाम दुनियावी धोखे के बावजूद भरोसे को बनाये रखता है।
मेरा अकेलापन इसलिए भी मुझे अँधेरे में जाने से बचा लेता है क्योंकि वहां एक भरोसा है। मुझे डर लगता है उन लोगों के लिए जो अकेले हैं और नास्तिक भी। जिनके पास आस्था और भरोसे के लिए कुछ भी नहीं।
सल्जबर्ग की तस्वीर

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