Wednesday, April 6, 2016

सोशल मीडिया खा जायेगा एकदिन हमें

तबीयत ठीक नहीं है। कल से बुखार है। आज सुबह उठा तो पता नहीं क्या सूझा- सोशल मीडिया पर अपडेट कर दिया। अचानक से लोगों के कमेंट आने शुरू हो गये। गेट वेल सून। लगा क्या है ये….भाई ने पोस्ट को लाइक किया, फोन नहीं किया। इसी तरह दो-तीन लोगों ने सीधा फोन कर दिया। अजीब लगा।
दरअसल हम बहुत जल्दी में रहते हैं। सोशल मीडिया को जिन्दगी का इतना बड़ा हिस्सा बना लिया है कि जिन्दगी ही कम पड़ने लगी है। सुबह उठो फेसबुक चेक करो, कभी फेसबुक से चटो तो ट्विटर है, इन्सटाग्राम है, टंबलर है। मतलब आपको घेरने की पूरी तैयारी है। आप इन्टरनेट से बचकर कहीं जा नहीं सकते। आपको टंबलर से उतारा जायेगा तो आप व्हॉट्सअप पर आ जायेंगे। लेकिन बने रहेंगे।
बहस करेंगे. ये गलत है, वो गलत है- लिखेंगे। यहां खाना खाया, यहां अमुुक दोस्त से इतने सालों बाद मिला, ये सब अपडेट करते चलेंगे। किसी पार्क में बैठने गए तो बहुत सारी तस्वीरें उतार लेंगे। बैठेंगे कम उचक-उचक तस्वीरें ज्यादा उतारेंगे। फूल खिले हैं, उनकी मुलामियत को फील नहीं करेंगे, उसे कैमरे के डब्बे में कैद करने की कोशिश करेंगे। पत्तियों की खूशबू कितने दिन पहले महसूस हुआ था, याद नहीं है।
कई बार लगता है हम एक मैनुफैक्चर दौर में रह रहे हैं। हमारे पास दूसरे के बने-बनाये ओपिनियन हैं। हम उसे इस्तेमाल कर रहे हैं, या फिर हो सकता है हमारा इस्तेमाल किया जा रहा है किसी एजेंडे के तहत। हमारे पास अपना कुछ नहीं है। कुछ हो जब पढ़ा जाये, यहां तो किताब खोल कर बैठो तो उसकी तस्वीर पहले इंस्टग्राम पर चढ़ती है।
याद आता है स्कूल के दिनों में हम पढ़ने के लिये पहले माहौल बनाते थे। टेबल-कुर्सी को छाड़-पोंछ किया जाता था, टेबल पर घड़ी लगायी जाती थी, कलम सजायी जाती थी, दो-चार-पाँच किताब टेबल पर रेफरेंस के लिये रखा जाता था, पानी का बोतल, कुछ खाने-पीने का सामान यह सब जुटा कर टेबल पर पढ़ने बैठा जाता था। लेकिन ये सब जुटाने में ही ज्यादा समय चला जाता था, पढ़ता कम ही था। आजकल यही इस सोशल मीडिया ने कर दिया है। पहले किताब को आर्टिस्टिक तरीके से रखकर फोटो खिंची जायेगी, फिर अपलोड कर लाइक-कमेंट देखे जाते रहेंगे। बीच-बीच में एकाध पंक्तियां पढ़ भी ली तो उसे जल्दी से फेसबुक पर भी पहुंचा दिया जायेगा। लेकिन पढ़ा न जी न। बिल्कुल नहीं।
अगर आपका कोई एजेंडा नहीं है तो शायद सोशल मीडिया सही जगह नहीं- अब लगने लगा है। सोशल मीडिया ने बीमार भी बनाया है। एडिक्टेड। कोई गाली दे रहा है, कोई नफरत फैलाने वाला मेसेज फॉरवर्ड कर रहा है, कोई घृणा से भरे विडियो साझा कर रहा है। एक अजीब तरह की दुनिया बना दी गयी है- जहां प्रेम रेयर है, जहां आदमी होने की बेसिक तमीज रेयर है, जहां आपको इन्सान नहीं बनने दिया जा रहा है, जहां आप हमेशा शक के घेरे में हैं। आप संदिग्ध बना दिये गए हैं।
I am sick of this Social media and dont know how to get rid of this.

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