Friday, February 17, 2017

डायरी इन्ट्री फरवरी 17

लगता है कुछ खोता जा रहा है- मेरा मैं ही शायद। मैं में हू डूबा, उसी में अब पार नहीं सूझता। Interest in life अब खत्म सा होने लगा है। किसी भी चीज के लिये वो Interest नहीं समझ आता।

दफ्तर, काम जिससे प्रेम था, अब खोने लगा है। विचार बहुत पहले मर चुके हैं, दोस्ती, प्रेम, रिश्ते किसी के लिये भी interest नहीं रह गया है।

अब तक लोगों को भ्रम में रखते आने का दोषी मानता हूं , और खुद को खुद के लिये शायद ही कभी माफ कर पाऊँ।

अपनों के खिलाफ भयानक खिलाफ हो गया हूं, जिनसे प्रेम है उनपर झल्ला रहा हूं, उनसे रूड हो रहा हूं।

अब लगता है या कुछ लगता ही नहीं है- कुछ पकड़ में नहीं आ रहा है।

जीवन का मकसद, जीने की कोई एक वजह नहीं सूझता, और मरने की हिम्मत नहीं।

शाम है अभी, बॉलकनी में फूल खिले हैं, गमले रखे हैं, ख्याल आता है बॉलकनी को जंगल बना दूं, सब सपना है, या नींद में ही चलने जैसा है।

रौशनी बहोत है कमरे में, लेकिन अँदर घनघोर अँधेरा।

साइनआउट
Tonight I am ugly. I have lost all faith in my ability.  My social contact is at the lowest ebb.  I dont care about anyone.

No comments:

Post a Comment

बेकाबू

 रात के ठीक एक बजे के पहले. मेरी बॉलकनी से ठीक आठ खिड़कियां खुलती हैं. तीन खिड़कियों में लैपटॉप का स्क्रीन. एक में कोई कोरियन सीरिज. दो काफी...