Friday, February 9, 2018

प्रेम न कर पाना ही प्रे और म है...

प्रेम को न भूल सकना ही प्रेम है। इतना ही नहीं प्रेम को न कर पाना भी तो प्रेम ही है। और हर रोज जो ख्याल में आये, उसके बारे में लिख न सकना भी प्रेम है।
और जिसे लिख न पाया जा सके और सिर्फ याद ही याद हो...वो भी प्रेम ही है।
और जब जिसे लिखना चाहो और न लिख सको, और जिसे कहना चाहो उसे कह न सको, या उसके बारे में न कह सको तो उस प्रेम में कुछ भी न लिख पाना भी प्रेम ही है।
न कह सको तो चुपचाप सहो...भी प्रेम ही है। याद आये भी और उसे भूलाने की कोशिश में जुटे रह जाना भी प्रेम ही है।
और कुछ न समझ आ सकना भी एक तरह का प्रेम है। शब्दों को भूलना, जीवन का एक ही मकसद न लिख पाने की स्थिति को पाना भी प्रेम ही है, या है प्रतिशोघ।
प्रेम तक जाने वाले सारे पुलों को तोड़ लेना भी प्रेम है। और जहां हो वहां न रह पाना और वापिस न लौट पाना दोनों प्रेम ही है।
जहां हो वहां रह सकना भी प्रेम हो सकता है, बस उसे स्वीकार करने की हिम्मत न भर पाना ही प्रेम है।

प्रेम के इस महीने में एक प्रेम को याद करते हुए, दूसरे प्रेम को जीते हुए...प्रेम न कर पाने का अफसोस लिये...प्रेम के जिन्दाबाद बने रहने का नारा लगाना ही प्रेम है।
आमीन

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