Thursday, February 15, 2018

प्रेम की तितलियां और सुअर सा चेहरा

पहले वो सामान्य था। सामान्य से थोड़ा बेहतर ही। बिल्कुल बिल्लियों को तरह। उसकी आँखे थी। और मूंछ भी बिल्लियों की तरह उगे थे। बिल्लियों की तरह ही चंचल था। बिल्लियों की तरह ही घर की रसोई से दुध चुरा लिया करता था। और भागता रहता था।

फिर एक जूलाई की बात है। करीब करीब दो साल पहले वाले जूलाई। उस साल शादियां खूब हुई थीं। शादियों में उसका आना जाना भी हुआ था। कुर्ते खरीदे गए थे। खुश खुश में खूब नाचा गया था।
फिर वो थककर सो गया। उसकी नींद खुली तो वो एक बड़े शहर में था। बीच सड़क पर लेटा हुआ था। उसने झटपट अपनी नींद को विदा किया और सामने लिखे सुलभ शौचालय की तरफ भागा।

वहां एक गंदा सा पुराना सा आईना रखा था। आईने में उसने खुद को देखा। वो देखता क्या है कि उसका चेहरा अपनी जगह से गायब है। वहां चेहरे की जगह सुअर सा कसैला मुंह लिये कोई खड़ा है। उसने अपने हाथ टटोले, पैर को आगे-पीछे किया। नहीं वही था। वही और उसी का चेहरा बिल्लियों सा नहीं रह गया था। सुअर हो चुका था। फिर उसने जैसे-तैसे एक गंदी-फटी-मटमैली जगह तलाशी। वहां बहुत सारी उल्टियां थी।

जब वो बिल्ली था तो एक चिड़िया उसकी दोस्त हुआ करती थी। सुअर वाला चेहरा लेकर उसने सोचा पहले चिड़िया के पास चला जाये। लेकिन फिर उसकी हिम्मत नहीं हुई। उसने सुअर वाले चेहरे को लटकाया। उसके दिमाग में भी सुअर की गंध भरने लगी थी। वो अब सुअर था।

उसने सुअरों जैसा करना शुरू कर दिया। उसने सुअर जैसा ही चुमा। सुअर जैसा ही भागदौड़ मचायी। लोग उसके सुअरपने को देखते हुए भागने लगे।

वो काफी अकेला पड़ गय़ा। लेकिन सुअरपने को नहीं छोड़ा।
अब क्या...

एकदिन एक तितली उस सुअर की पीठ पर आकर बैठ गयी। सुअर के पेट में भी तितलियां चलने लगीं।
सुअर को अपने चिड़ियां दोस्त की याद आयी।
तितली पीठ पर बैठी रही। तमाम डर, आशंकाओं और चिंताओं के बावजूद।

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