Tuesday, October 16, 2018

ओ रे मनवा

मन के भीतर कितना कुछ चलता रहता है लेकिन आप चाहकर भी उन चीजों को लिख नहीं पाते।

आसपास कितना सारा शोर है, भीड़ है। लेकिन फिर भीतर अपने झांक कर देखो तो समझ आता है कि वहां भी कम शोर और भीड़ नहीं है।

मुश्किल होता है अचानक से इन सबको कम कर लेना, भीतर के शोर को और भीड़ को।
लेकिन चुप रह जाना भी किसी एहसान से कम नहीं है। इस बीच कैसी-कैसी खबरें आती रहीं लेकिन भीतर का शोर काफी हदतक नियंत्रण बाँधे रखा।

कई बार दो लोगों को बेहतर तरीके से साथ रहने के लिये एक बाहरी दुश्मन चाहिए होता है। अब आपकी बदकिस्मती है कि वो दुश्मन आप बन बैठें।

खैर,
प्रेम, दोस्ती, इंगेजमेंट, रिश्ते, शादी, वफा, बेवफाई, ढ़ेर सारे प्रेम के बीच खुद के गुम हो जाने का एक रिस्क सा रहता है।

सारे चक्रवात और झंझवातों से खुद को बचा रखना भी बड़ा जोखिम लेकिन साहस का काम है। नईँ ?

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