Thursday, February 9, 2012

पटने का लड़का,प्लेसमेंट,गर्लफ्रेंड और क्रान्ति पार्ट 2


पटने का लड़का,प्लेसमेंट,गर्लफ्रेंड और क्रान्ति

पटने का राकेश वैसे तो दूसरे बिहारी लड़कों की तरह ही बिल्कुल चुप्पा बाबा बन के कॉलेज जाता है। और क्लास में भी चुप्पी। इतना चुप्प तो वो पटने में कभी नहीं रहा। लेकिन क्या करे? यहां सभी लड़के-लड़कियां अपने में ही हां..हां.हीहहीं करते रहते और राकेश को उनकी हांहांहीही.. भी एक तरह की अंग्रेजी ही लगती है।
  कुछ लोग उसके दोस्त बनने लगे हैं। खासकर मुखर्जी नगर रिटर्न बिहारी लड़के खास सहानुभूति के साथ उससे बात करते हैं। बात-बात पर कोने में ले जाकर समझाते-बुझाते भी रहते हैं। एक दिन राकेश के फेसबुक पर क्लास की रश्मि सिंह का फ्रेण्ड सजेशन आया। उसने एड फ्रेण्ड का रिक्वेस्ट भेज दिया। फेसबुक की दोस्ती पर अलग से एक साहित्य की रचना हो सकती है। ऐसी दोस्ती जो एक क्लिक से बनती है और फिर बातें..और बातें । बात बढ़ी तो दोस्ती जिंदगी-भर के लिए और यदि पसंद-नापसंद बढ़ी तो फिर रिमूव के बटन पर चटका लगाया- दोस्ती खत्म। गोया यह कि इसी दोस्ती के सहारे कईएक बार हम अपने आस-पास के दोस्तों तक को भूलने लगते हैं।
  तो राकेश के फ्रेण्ड रिक्वेस्ट भेजने के दो-तीन दिन तक कोई नॉटिफिकेशन नहीं आया। राकेश ने एक-दो दिन इंतजार किया फिर भूल गया। बात आयी-गयी हो गई। कि चौथे दिन राकेश के फेसबुक पर नॉटिफिकेशन आया। फ्रेण्ड रिक्वेस्ट एकसेप्ट हो चुका था। इतना पढ़ते ही राकेश के मन में लड्डु फूटने लगे। अब तो ये बात सारे बिहारी समाज को पता चलनी चाहिए। बिहारी समाज मतलब वही राकेश, आरा का चंदन, सासाराम का मनीष बेगुसराय का विवेक और दरभंगा का अनिल अब तो इन पर भोकाल टाइट रहेगा’, राकेश सोच रहा था। अब स्साले ये भी नहीं कह पाऐंगे कि बिहारिये रह गया, रे।  आखिर इस बिहारी टैग से छूटकारा पाना भी एक अचीवमेंट ही तो था। लेकिन इसके लिए कुछ खास शर्तों को पूरा करना होता था,जिसमें से एक शर्त थी- किसी लड़की से दोस्ती।
अब लगता है वो इस शर्त को पूरी कर लेगा...

(कहानी जारी.....)

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