क्या दुनिया तुम्हारे पास आकर कहती है-
देखो, मैं हूँ?
- रमण महर्षि
देखो, मैं हूँ?
- रमण महर्षि
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| दीवाल पर बेशर्मी से लिखा ये पोस्ट |
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| अभिषेक आनंद हिन्दुस्तान पटना के साथ पत्रकारिता कर रहे हैं |
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| फिल्म डिक्टेटर में चार्ली |
धीरे-धीरे गांव से भाया कस्बा होते हुए शहर पहुंचा। कुछ केबल टीवी और कुछ यूट्यूब पर चार्ली चैपलीन की फिल्मों को देखने लगा- आज भी पूरा नहीं देख पाया हूं लेकिन दो-तीन फिल्मों को ही देख मन मानने लगता है कि अपना हिन्दी सिनेमा चार्ली चैपलिन जैसा एक भी हीरो पैदा न कर सका। कोई एक हीरो का नाम ले लीजिए जिसके प्रति श्रद्धा से आपका मन भर जाय लेकिन चार्ली की महानता देखिये कि आज भी उसकी फिल्मे दुनिया के हर कोने में देखी-पसंद की जाती है। चार्ली की कोई फिल्म देख लीजिए। उनकी फिल्मों में भी शोषण, अमानवता, असमानता के खिलाफ लड़ाई दिखती है लेकिन झुठउका मार-धाड़, धिसुम-धिसुम से अलग। हमारे यहां तो नायक पिलपिलाया रहता है आव देखा न ताव मार-पीट शुरू। अब जरा सोचिये जो जेनरेशन ही जवान हो रहा हो मारपीट-धिसुम-धसाम के बीच उसकी समाज-व्यवस्था और जीने की लड़ाई में कितनी गहराई आ पाएगी। चार्ली अपनी फिल्मों में कैसे हंसते-हंसाते बड़ी-बड़ी चोट कर जाते हैं। खुद मार खा कर भी इस व्यवस्था को गहरी चोट पहुंचा जाते हैं। हमारे यहां का कोई हीरो मार खाने लगे तो उसे फ्लॉप मान लिया जाता है।![]() | |
| indian charlie |
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| बादल और धुंए का ये दृश्य |
सिंगरौली लौट आया हूं। कभी
पहाड़ों के उपर तो कभी उनके बीच से बलखाती निकलती पटना-सिंगरौली लिंक ट्रेन।
बीच-बीच में डैम का रुप ले चुकी नदियों और उनके उपर बने पुल तो कभी पहाड़ो के पेड़
से भी ऊंची रेल पटरी से गुजरती ट्रेन। जंगल में उदास खड़े चट्टान और थोड़ी दूर-दूर
पर खड़े अपने-अपने अकेलेपन के साथ पेड़। ट्रेन की खिड़की से झांकती मेरी आंखे और
बीच-बीच में कैमरे का क्लिक। दूसरी तरफ मेरे हाथों में नाजियों द्वारा तबाह-बर्बाद
कर दिए गए कस्बे लिदीत्से पर निर्मल वर्मा का यात्रा संस्मरण- मानो लिदीत्से पर
किए गए उस नाजी अत्याचार को फोटो खींच रहे हों वर्मा। तय करना मुश्किल इन पहाड़,
जंगल. नदी को देखता रहूं, जो शायद कुछ सालों बाद मानव सभ्यता के विकास के नाम पर
बर्बाद कर दिए जाएंगे या फिर नाजियों के द्वारा जलाए गए बच्चों की स्कूल जाती
तस्वीर और मार दी गयी औरत के नीले स्कार्फ के संस्मरण पढ़ता रहूं। आखिर क्या अंतर
है उस जर्मनी के नाजी अत्याचार और इस दुनिया के महान लोकतंत्र वाले देश में जहां
जल-जंगल-जमीन-जन की रोज विकास के नाम पर हत्या की जा रही है?![]() |
| शोवरण |
क्या ऐसे भी बुदबुदाया जा सकता है? कुछ जो न कहा जा सके, जो रहे हमेशा ही चलता भीतर एक हाथ भर की दूरी पर रहने वाली बातें, उन बातों को याद क...